Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 437
________________ वड्डमाणचरिउ पह-समु-पथ-श्रम (पथका श्रम ) २।६।३ पावखओ-पापक्षय, पापका क्षय २।१४।१२ पहाण-प्रधान २११४ पावण्ण-प्रावरण १०।१७।१५ पहार-प्रहार ५।१२।५ पावणु-पावन २०६२ पहावइ-प्रभावती ८।१९ पावापुर-पावापुरी ( नगरी) १०।४०११० पहासु-प्रभास ६।१।६ पावासउ-पापाश्रय २।२२।२ पहि-पथ ११३।१३ पावि-प्राप्त १।१०।१० पहिउ-पथिक ११३।११ पाविवि-प्राप्य श१०।२ पहिय-पथिक ३।१।१० पावोवओग-प्रायोपगमन ८।१७३६ पहिल्लउ-पहला, प्रथम २।११।१२ पास-पार्श्वनाथ ( तीर्थंकर ) १११११४ पहिसिय-वयणिहिं-प्रहसितवचनैः ( हंसते पासि-पाश (फाँसी) ३।२४।२ हुए वचनोंसे ) २।२०१२ पासे-पाव ( भाग) ३।११३ पहुत्तउ-प्रभुत्व २।१७।१३ पासेय-पसीना ५।२११९ पहूवउ-प्राप्त हुआ २।८८ पित्त-पित्त १०॥३२॥४ पहंकरि-प्रभंकरी ( विद्या) ४।१९।२ पित्त-जर-पित्तज्वर ४।८।६ पाइक्क-पदाति ( सेना) ३११११ पित्तिय-पितृव्य, चाचा ३।५।११ पाइज्ज-पायित ( पान कराया जाना) २३।१२ पिपीलिय-पिपीलिका ( त्रीन्द्रिय ) १०८२ पाउसु-पावस (वर्षा ऋतु) २।२२।१२, ३।२२।१२, पिम्मणई-प्रेमरूपी नदी १११११११ ५।१९।१२ पिय-प्रिय १।४।१६ पाहुड-प्राभृत १।१२।११ पियकारिणी-प्रियकारिणी ( रानी ) ९।३।१६ पाडल-कूसुमा-पाटल-कुसुम ४।१२।४ ९।५।१२, ९।१८।२ पाण-प्राण :२।१६।२, ८।१०।४, १०१७।११, पियदत्तु-प्रियदत्त ( व्यक्ति) ८।२।१ १०८।६,१०८।१० पियपद-प्रियपद २।१११० पाणय-कप्पे-प्राणत कल्प (स्वर्ग) ८।१७७ पिय-बंधव-प्रिय बान्धव ४।२।८. पाणि-हाथ १।९।४ पियमत्त-प्रियमित्र (चक्रवर्ती) ८।४।१० पाणिय-पानी १३८1८, १८।१४ पिययम-प्रियतम १११११९, पाणिय-वलय-जल-वलय २।१११६ १११७।११ पामर-किसान १।३।१२,४।२२१७ पियवाय-प्रियवचन ( वाले ) ११५।१३ पामर-यण-पामरजन ४।२१११३ पियालंकरिय-प्रियतमासे अलंकृत ११४।४ पायडिय-प्रकटित, प्रसिद्ध ११३।३ पियास-पिशाच १०।२७।१० पाय-पाद १११११३ पियासिय-पिपासित ( तृषातुर ) ३।२११५ पायारकोडि-प्राकारकोट ९।२।१ पियंकर-प्रियंकरा ( राजकन्या) १११११८ पायासन-पादासन ( जूते) ८।५।८ पियंकरा-प्रियंकरा ( रानी ) २।३।२ पारद्ध-प्रारम्भ ३।१२।२ पियंकरा-प्रियकारी २।३।२ पारधु-पार करना ८।१४।२ पियंकरे-प्रियंकर ( प्रियकारी) २।२२।७ पारस-कर्कश १०।१९।५ पिसुण-पिशुन (चुगलखोर ) २।१११७ पारासरि-पारासरी ( नामकी ब्राह्मणी) २।२२।९ पिसुणु-पिशुन (चुगलखोर ) ५६५ पालिवि-पालित २।११।१ पिहिउ-पिहित ३।२१।१२,४।२०११ पावइ-प्राप्य +इ २१६५ पिहिय-पिहित २११८०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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