Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 394
________________ परिशिष्ट १ (क) २९१ घत्ता-हय-गय-रह-भडयण-सय दलहिं सहइ रणावणि झत्ति समायहो। णाणा रसोइणं वित्थरिय रणसिरियन णिमित्तु जमरायहो ।।-पास.-४।१२ कुमार-पार्श्वको बाल-लीलाएँ सक्काणई पेरिउ देउ को वि णायर-णर-मणहरु पीलु होवि । चवलंगु तुरंगमु तंव चूलु सेरिहु सुमेसु विसु साणुकूलु । कीलइ सहुँ हयसेणह सुएण जय-लच्छि परिलंछिय भएण । सह जाय केस-जड-जूड़वंतु कडि-रसणा-किंकिणि-सद्दवंतु । अविरल धूली-धूसरिय देहु सिसु कीलामल सिरि-रमण गेहु । णिव णारिहिं लिज्जइ झत्ति केम तिहुअण जण मोहणु इयणु जेम । जो तं णिएइ वियसंत वयणु चणियायणु वुहयणु अहव सयणु । सो अमरुव अणिमिस णयणु ठाइ णव-कमल-लीण भमरुअ विहाइ। जं किं पि धरइ लीलए करेण तं व हरिज्जइ पविहरेण । हो हल्लरु जो जोयइ भणेवि परियं दिज्जइ सामिउं गणेवि । चलहार रमणि रमणीयणेहिं ....ला संचालिय लोयणेहिं । तुह सेवए लब्भइ सोक्ख रासि तुट्टइ दवट्टि संसार पासि । घत्ता-कीलंतहो तासु णिहय सरासु च्छुडु परिगलिउ सिसुत्त । इय लीलए जाम दिट्ठउ ताम हयसेणे णिय पुत्त । पास.-२०१५ ७ भयानक अटवीमें रहनेवाले विविध क्रूर पशु एवं उनको क्रियाएँ वस्तु जाण वोलिउ वाहिणी सेण-जिपणाहु असुराहिवेण ता विमुक्क सावय-सहासई । दिढ-दाढ-तिक्खाणणहिं तिविह लोयमह भय पयासई ।। गय-गंडोरय-गयणयर-महिस-वियय-सद्ल । वाणर-विरिय-वराह-हरि सिर लोलिर-लंगूल ॥छ।। केवि कूरु घुरुहुरहिं दूरस्थ फुरहुरहि । केवि करहिं ओरालि ण मुवंति पउरालि। केवि दाढ दरिसंति अइ विरसु विरसंति। कवि भूरि किलिकिलहिँ उल्ललेवि वलि मिलहि। केवि णिहय पडिकूल महि हणिय लंगूल। केवि करु पसारंति हिंसण ण पारंति। केवि गयणयले कमहि अणवरउ परिभमहिं। केवि अरुण जयणेहि भंगुरिय वयणेहिं। केवि लोय तासंति अक्कयत्थ रुसंति । केवि धुणहिँ सविसाण कंपविय परिपाण। केवि वुट्ट कुप्पंति परिकहि झडप्पंति। 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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