Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 433
________________ ३३० नम्मु-नम्र नमिय-नमित नयमग्गे न्याय मार्ग नयाण-नतानन, (नतमुख) नरजम्मु - नरजन्म नरवर - नरवर (आश्रयदाता के पिता) नरहिउ नराधिप नराहिव - नराधिप ( नन्दिवर्धन) नारद - नरेन्द्र (राजा) नव-नलिणी - नव- नलिनी ( नवीन - कमलिनी) वेणु - नम् + एप्पिणु ( नमस्कार कर ) नह-नभ नहयल - नभस्तल नाइँ- ननु, इवके अर्थमें नाणुक्करिस - ज्ञानोत्कर्षं ( ज्ञानका उत्कर्ष ) नाय-नाग नाय - नागकुमार नारइय- नारकीय (जीव ) नाहल - नाहल ( म्लेच्छ, वनचर ) निए - ( अवलोकनार्थे, देशी) देखकर निच्छउ - निश्चय निच्चित - निश्चिन्त निज्झाइय-निर्ध्यात निज्जिय - निर्जित नित्तेइ - निस्तेजस् निब्भंत - निर्भ्रान्त निम्मल सीलु - निर्मल शील नियमणु-निजमन निय-मण- निजमन नियराणंदिय - नितरामानन्दित (अत्यन्त नियसत्ति - अपनी शक्ति नियाणि-निदान asarrafts २।३।१३ १।९।३ ४।१२।२ २८|१० १।१४१९ २।१३।५ १।२।१ निरहंकार - निरहंकार निराउहु-निरायुध निरारिउ-नितराम् १।१०१८ १७।१० निरु - नितराम् ( निरन्तर ) निरुवम - निरुपम निरंग - कामदेव निरंधु - नीरन्ध्र निरंवर - निरम्बर ( निर्वस्त्र ) निलउ - निलय (भवन) निव्वत्तणु - निवर्तना निव-नृप निवडिय - निपतित ( पतित ) निव-विज्ज-नृप विद्या निवस- निवस् निविg - निविष्ट निसरण - निषण्ण (बैठे हुए) निवि-नि: + श्रु + इवि (सुनकर ) Jain Education International ३।२१।४ १।१११,१११०१६ निठुरंग - निष्ठुर अंग ५१८२४ निण्णासिय-निर्नाशित ( नष्ट कर देनेवाले ) २८३ ५।६।६ २२११८ १।६।१० १।१७।१५ १|१४|१ ३।२३।५ १।१३।१२ १८६ १०।१९।११ ४७७ १०।२९।६ १०१४१५ १०।१९।६ १।५।१० ४।१५।६ १।४।१७ २।१९।७ २१२६ नियंबावणि- नितम्बावणि निरंतर - निरन्तर निरवज्ज - निर् + अवद्य ( निर्दोष ) निरविक्ख - निरपेक्ष निरसिय- निरसित आनन्दित ) २।१८।३ १।१७।१६ ३।९।१४ निसुतु - V नि: + श्रु + शतृ + उ निहणिय-निहनित हिम्मइ - Vनि + न् इ नील- रुवि - नीलरुचि नेसर - दिनेश्वर (सूर्य) नंदण - सुपुत्र ३॥२१॥७ १८ १२ ३।२३।१३ ४।१३।१२ ३।२२।१ २८|१२ २।८।११ १।१३।४ ११८११ १।१३।१ २।१०।१५ ५।१६।१७ १०।१९।५ २११७१७ १०१५/४ १।१३।६ २१७१२ २।२३।१४ १|४१९; २|१०|४ २८५ १।३।१५ २५/२ १।११।५ १।९।११ ४१७१८ ३।२११२१ पउप-पद पउमणील - पद्मनील पउमप्पह- पद्मप्रभु (छठवें तीर्थंकर) For Private & Personal Use Only [ प ] पइसमि- प्र + विश् + मि ( प्रवेश करूँ ) २।२११९ पइसेप्पणु - प्रविश् + एप्पिणु २|४|४ पइते - प्रविश् + शतृ पईं-त्वम्, आप पईव - प्रदीप २।३।१ १।२।१ २।६।७ १।१७११ ३ १३।२ २।२१।५ १1१०1१० १८२ ११११५ www.jainelibrary.org

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