Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 395
________________ २९२ वड्डमाणचरिउ केवि पहु ण पावंति डसणत्थु धावंति। गय सत्ति हुअ जाम णिप्फंदयिय ताम। हय वइरि गावेण जिण तव पहावेण। ण फुरंति ण चलंति महिवीदुण दलंति । चित्तेवि णव ठंति णवियाण णा ठंति । घत्ता-जिणवरु परमेसरु भय रहिउ भीसण वणय सणियरहिं सहिउ । णीसेस धराधर राउ जह पेक्खेवि णिक्कंप सरीरु तह ।। पास.-७१४ भयानक युद्ध में प्रयुक्त विविध शस्त्रास्त्र दुवई अहवा इउ ण चोज्जु तहो दसणे जं रिउ पत्त-णिग्गहो। जाया जसु जयम्मि णामेण वि दूरो सरहि दुग्गहो ॥छ।। जउणाणउ बलु भीसिवि भरेण पीडेवि फणिवइ णियरह भरेण । रविकित्ति णरेसरु धीरवेवि करे स-सरु सरासणु परिठवेवि । वावल्लहि जोहहिं खउ करेवि धाविउ गय सम्मुहुँ करेवि । णिसियासि-धार-णिद्धलिय केवि कुंभत्थले कडु रडि थरहरेवि । णिवडिय महि-मंडलि सहहिं केम सयमह-पवि-हय धरणिहर जेम । उत्तुंग-गिरिंद-समाण जेवि दीहर-कुंतग्गहि भिण्ण तेवि । णं सलिल पवाह हिँ महिहरिंद विवरंतरि धारिय-किण्णरिंद । तिक्खग्ग खुरप्पहिँ छिण्ण केवि गय-मूल-तरु व परिवडिय तेवि । णिदलिय केवि कट्टेवि करालु करवालु दलिय वइरिय कवालु । परिवडिय सहहिं रणे गरुअ काय णं जयसिरि-कीला-सेलराय । करडयल-गलिय-मयमत्त जे वि ओसारिय वाणहि हणेवि ते वि । णं णीरय पलय-समीरणेहिँ गयणंगणे रेणु-समीरणेहि। __ घत्ता-परिहरिय केवि चूरिय-दसण सत्ति-तिसूल-घाय-घुम्माविय । दुज्जण इव दरिसिय मय-विहव भुअवलेण धरणीयलु पाविय।।-पास.-५।६।। 15 रणक्षेत्रका घोर हृदय-द्रावक चित्रण दुवई इय णिद्दलिय सयल मह-मयगल पास-कुमार सामिणा । सयलामल-ससंक-सण्णिह-मुह सुर-वणियाडहि रामिणा ।। रुहिरोल्लियाई सरसल्लियाई। गयचेयणाई बहुवेयणाई। वियलिय गुडाई तह मुहवडाइँ। लुअ धयवडाइ हय-हय-थडाइँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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