Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 403
________________ 5 10 15 5 10 ३०० भोपुखाड़ वंस सिरिभूसण एक्कचित्तु होव आयणहि आसि पुरा परमेट्ठिहि भत्तउ सिरिपुरवाड - वंस मंडण चंधड गुरु भत्तिय परणमिय मुणीसर तो गल्हा णामेण पियारी विमल सीलाहरण विहूसिय गुरुहु पीथे जाउ अवतु महिंदे बुच्चइ बीयउ जणु णा णि उत्थउ छट्ठउ उ संपुष्णु हुअउ जह अट्ठमु सुर जयपालु समासिउ महोपिय णामेण सलक्खण ता कुमरु णामेण तणूरुहु विणय - विहूण भूसिउ कायउ इय सिरिसुकुमालसामि मनोहर चरिए सुंदरयर गुण-रयण-णियरस भरिए विबुह सिरिyas - सिरिहर विरइए साहु पीथे पुत्त कुमर णामंकिए अग्गिभूइ वाउभूइसूरमित्त मेलावयण वण्णणो णाम पढमो परिच्छेओ समत्तो ॥ १॥ अन्त्य प्रशस्ति ६।१२ वडमाणचरिउ हे पाह णामेण पहूयउ atra साल्हणु जो जिणु पुज्जइ तइयउ वले भणिवि जाणिज्जइ तुरियर जयउ सुपटु णामेँ यह णीसेस कम्मक्खउ मज्झवि जिकजण अण्ण sag संघु महीयलि णंदउ खहु जाउ पिसुणु खलु दुज्जणु एउ सत्थु मुणिवरहँ पढिज्जउ जाम हंगणि चंद-दिवायर पीथे वसु ताम अहिणंदउ धरिय-विमल-पम्मत्त विहूसण | जंपइ पुच्छिउ मा अवगण्णहि । Jain Education International घत्ता - णाणू अवरु बीयउ पवरु कुमरहो हुअ वर गेहिणि । पउमा भणिया सुअणहिं गणिय जिण-मय-यर बहु रोहिणि || चविह चारु दाण अणुरत्तउ । णियगुणणियरादिय बंधउ । साहु जग्गु वीसर | गेहिणि मण- इच्छिय सुहयारी । सुह-सज्जण बुहयणह पसंसिय । ज - सुहयरु महियले विक्खायउ । बुहयणु मणहरु तिक्कउ तइयउ । पुण विलक्खणु दाण समत्थउ । समुदपाल सत्तमउ भणउ तह । विणयाइय गण गणहिं विहूसिउ । लक्खण कलिय सरीर वियक्खण । जाय मुह पह पहय सरोरुह । मय-मिच्छत्त-माण-परिचत्तउ । ६।१३ पढम पुत्तु णं मयण-सरूवउ । जसुरुवेण ण मणहरु पुज्जइ । बंधव-सुयणहिँ सम्माणिज्जइ । णावइ णियसरु दरसिउ कामेँ । जिणमयर महँ होउ दुक्खक्खउ । X X X X जिणवर पय-पंकयए वंदउ । दुट्ठ दुरासउ जिंदिय सज्जणु । भत्ति भविणेहिं णिसुणिज्जउ । कुल गिरि- मेरु महीयलि सायर । सज्ज सुहि मणाइँ अणिदउ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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