Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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परिशिष्ट - १ (क)
पश्चाद् बभूव शशिमण्डल- भासमानः ख्यातः क्षितीश्वरजनादपि लब्धमानः । सद्दर्शनामृत - रसायन-पानपुष्टः, श्रीनट्टलः शुभमना क्षपितारिदुष्टः ||४|| तेनेदमुत्तमधिया प्रविचिन्त्य चित्ते, स्वप्नोपमं जलदशेषमसारभूतम् । श्री पार्श्वनाथचरितं दुरितापनोदि, मोक्षाय कारितमितेन मुदं व्यलेखि ॥५॥
अहो जण चि चित्तु करेवि खणेक्क पर्यपिउ मज्झु सुणेहु इहत्थि सिद्ध ढिल्लिहिं इक समक्खमि तुम्हाँ तासु गुणाईं ससंक सुहा समकित्ति धामु मनोहर -माणिणि रंजण कामु जिणेसर- पाय- सरोय-दुरेहु या गुरु भत्तु गिरिंदु व धीरु अदुज्जणु सज्जण सुक्ख-पयासु असेसहँ सज्जण मज्झि मणुज्ज महामवंत भावइतेम सवंस हंगण भासण-सूरु
होह पयासणु धम्मुय मुत्तु दयालय वट्टण जीवण वाहु पिया अइ वल्लह वालिहे णाहु
भिसं विससु भमंतु धरेवि । कु भाव सव्वाइँ हाँतह हु । रुत्तणं अवइण्णउं सक्कु । सुरासुर-राय मणोहरणाइँ । सुरायले किण्णर गाइय णामु । महामहिमाल लोयहँ वामु । विसुद्ध मणोगइ जित्तइ सुरेहु । सुही-सुहओ जलहिव्व गहीरु । वियाणिय मागह लोय पयासु । रिंदहँ चित्ति पयासिय चोज्जु । सरोयणराहँ रसायणु जेम । सवंधव वग्ग मणिच्छिय पूरु । वियाणिय जिणवर आयमसुत्तु । खलाणण चंद पयासण राहु ।
घत्ता - बहुगुणगणजुत्तहो जिणपयभत्तहो जो भासइ गुण नट्टलहो । सोहं गणु रमय वरंगणु लंघइ सिरिहर हय खलो ||१||छ ||
पंचागुव्वय धरणु स सयल सुअहं सुहकारणु । जिणमय पह संचरणु विसम विसयासा वारणु ॥ मूढ-भाव परिहरणु मोह-महिहर - णिहारणु । पाव-विल्लि णिद्दलणु असम सल्लई ओसारणु ॥ वच्छल्ल विहाण पविहाणय वित्थरणु जिण- मुणि-पय-पुज्जाकरणु । अहिणंद णट्टल साहु चिरु विवहयण मण-धण-हरणु ॥१॥
दाणवंतु तकिं दंति धरिय तिरयणि त किं सेणिउं । रुववंतु त किं मयणु तिजय तावणु रइ भाणिउ ।। अगहरु त किं जलहि गरुय लहरिहिँ हय सुखहु । अइ थिरयरु त किं मेरु वप्प चय रहियउ त किं नहु ॥
उ दंति न सेणिउं नउ मयणु ण जलहि मेरु ण पुणु न नहु । सिखिंतु साहु जेजा तणउं जगि नट्टलु सुपसिद्ध इहु ॥२॥
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