Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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२८८
बड्डमाणचरिउ अंग-वंग-कालिंग-गउड़-केरल-कण्णाडहं। चोड-दविड-पंचाल-सिंधु-खस-मालव-लाडहं॥ जट्ट-भोट्ट-णेवाल-टक्क-कुंकण-मरहट्ठहं। भायाणय-हरियाण-मगह-गज्जर-सोरट्रह। इय एवमाइ देसेसु णिरु जो जाणियइ नरिंदहिं । सो नट्टलु साहु न वणियइ कहि सिरिहर कइ विंदहिं ॥३॥
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दहलक्खण जिण-भणिय-धम्मु धुर धरणु वियक्खणु । लक्खण उवलक्खिय सरीरु परचित्तु व लक्खणु ॥ सुहि सज्जण बुहयण विणीउ सीसालंकरियउ । कोह-लोह-मायाहि-माण-भय-मय-परिरहियउ ।। गुरुदेव-पियर-पय-भत्तियरु अयरवाल-कुल-सिरि-तिलउ । णंदउ सिरि णट्टलु साहु चिरु कइ सिरिहर गुण-गण-निलउ ॥४॥
गहिर-घोसु नवजलहरुव्व सुर-सेलु व धीरउ । 75
मलभर रहियउ नहयलुव्व जलणिहि व गहीरउ । चिंतिययरु चिंतामणिव्व तरणि व तेइल्लउ । माणिणि-मणहर रइवरुव भव्वयण पियल्लउ । गंडीउ व गुणगणमडियउ परिनिम्म हिय अलक्खणु ।
जो सो वण्णियई न केउ ण भणु नट्टलु साहु सलक्खणु ॥५॥ 80
इति श्री पाश्र्वनाथ चरित्रं परिसमाप्तं ॥
शुभं भवतु ॥श्री।।छ।श्री।छ।।श्री।।छ।।श्री।।छ।।श्री॥छ।। पुष्पिका लेख
_ संवत् १५७७ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ श्री मूलसंघे नन्द्याम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे ____ श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये । भट्टारक श्री पद्मनंदीदेवास्तत्पट्टे भट्टारकश्रीशुभचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भ. 85 श्रीजिनचंद्रदेवास्तत्पट्टे । भ. श्रीप्रभाचन्द्रदेवास्तत्शिष्य मुनि धर्मचन्द्रस्तदाम्नाये खंडेलवा
लान्वये डिहवास्तव्ये । पहाड्या गोत्रे सा. ऊधा तद्भार्या लाडी तत्पुत्र सा. फलहू द्विती (य) गूजर पलहू भार्या सफलादे सा. गूजर भार्या गुणसिरि तत्पुत्र पंचाइण एतैः इदं शास्त्रं नागपुर मध्ये लिखाप्य मुनिध(म) चंद्राय दत्तं ॥
ज्ञानवान्ज्ञानदानेन निर्भयोऽभयदानतः। 90
अन्नदानात्सुखीनित्यं नियाधिभेषजाद्भवेत् ॥ ॥ शुभं भवतु ॥
-श्री आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर प्रति नं. ७३४, पत्र ९९, पंक्ति ११, प्रतिपंक्ति अक्षर ३७-३९, प्रथम पत्र १ ओर रिक्त । अन्तिम पत्रमें ९ पंक्ति ग्रन्थकी तथा पंक्ति ५ पुष्पिकाकी हैं।
प्रशस्ति-भाग समाप्त ।
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