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१०.८.६ ]
हिन्दी अनुवाद
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स्थावर जीवोंका वर्णन
पाँच वर्णवाले मणियोंकी रुँधी हुई दो प्रकारकी मिट्टी है, वह मिश्र पृथिवी कहलाती है, उससे और भी कृष्ण, पीत, हरित, अरुण एवं पाण्डुर वर्णं तथा धूसर वर्णं उत्पन्न होता है, उसो वर्णके पृथिवीकायिक जीव भी होते हैं, जिन्हें आगमों में पाँच वर्णं गुणवाला कहा है ।
शीशा, ताँबा, मणि, चाँदी एवं सोनेको विचक्षण पुरुष खर- पृथिवी कहते हैं ।
घृत, मधु, मद्य, खीर एवं खारके समान विसदृश जीव जल-कायिक जीव कहे जाते हैं । दूरसे ही दुस्सह, धूमको प्रकाशित करनेवाली, वज्र, रवि, मणि, विद्युत्से उत्पन्न जीव अग्निकायक जीव हैं ।
उत्कलि मण्डलि आदि करती हुई ( सांय-साँय करती हुई ) जो वायु ठहरती नहीं, दिशाओं- विदिशाओं में चली जाती है वह वायुकायिक जीव हैं ।
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गुच्छ, गुल्म ( झाड़ी), वल्ली, बाण, पर्व ( पोर) आदि स्थानों में निश्चय ही वनस्पतिकायिक जीव रहते हैं और अपने पूर्वाजित कर्मोंका विलास भोग करते हैं। जिस प्रकार पर्याप्तअपर्याप्त सूक्ष्म बादर जीव होते हैं उसी प्रकार साधारण प्रत्येक भी समझो।
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विकलत्रय जौर पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंका वर्णन
साधारण जीवोंमें आयु, श्वासोच्छ्वास और आहार सभी समान होते हैं ।
प्रत्येक जीवोंके निश्चय ही प्रत्येक शरीरांग होते हैं, उनकी छेदन, भेदनवशसे अधमगति हो जाती है ।
मृदुभूमिवश ( पृथिवीकायिक) जीवोंकी आयु १२ सहस्र वर्षोंकी होती है । खर पृथिवीकायिकके जीवोंकी आयु ११ की दुगुनी अर्थात् २२ सहस्र वर्षोंकी जानो ।
जलकायिक जीवोंकी आयु सात सहस्र अहोरात्रकी तथा अग्निकायिक जीवोंकी तीन अहोरात्र की कही गयी है ।
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घत्ता - जिस प्रकार समीरण - वायुकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु तीन सहस्र तथा वनस्पतिकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु दस सहस्र वर्ष कही गयी है उसी प्रकार उनकी अधम जघन्य आयु भी भिन्न मुहूर्तकी कही गयी है ॥ २००॥
द्वन्द्रिय प्राणी असंख्यात होते हैं, वे अक्ष, कुक्षि, कृमि, शुक्ति और शंख आदि भेदवा होते हैं । गोमिन् पिपीलिका आदि त्रीन्द्रिय जानो, जिन्हें मैंने अपने केवलज्ञान से देखा है ।
दंश - मशक, मक्खी आदि चतुरिन्द्रिय प्राणी जानो, उन्हें अपने केवलज्ञानसे जानकर हो मैंने तुझे कहा है । कुछ ज्ञान - परिपाटीके अनुसार इन विकलत्रयोंके युक्ति-पूर्वक तीन भेद कहे गये हैं
स्पर्शनेन्द्रियके ऊपर रसना, घ्राण तथा नयन नामकी एक-एक अनिन्द्य इन्द्रिय ऊपर-ऊपर बढ़ती है (यथा-- दो इन्द्रियोंके स्पर्शन और रसना, तीन इन्द्रियोंके - स्पर्शन, रसना और घ्राण, चार इन्द्रियोंके स्पर्शन, रसना, घ्राण और नयन ) ।
उक्त विकलत्रयोंकी पाँच पर्याप्तियां कही गयी हैं तथा प्राण क्रमश: ( द्वीन्द्रियों के — ) छह ( त्रीन्द्रियोंके - ) सात एवं ( चतुरिन्द्रियोंके - ) आठ संस्थित कहे गये हैं ।
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