________________
१०.१४. १३ ] हिन्दी अनुवाद
२४१ पत्ता-चतुरिन्द्रिय जीवोंकी उत्कृष्ट आयु ६ माहकी तथा पंचेन्द्रिय कर्मभूमिके भूचर, (स्थलचर) तथा अनिमिष-जलचर जीवोंकी उत्कृष्ट आयु एक कोटि पूर्वकी देखी गयी ऐसा कहा गया है ॥२०५।।
सर्प आदिको उत्कृष्ट आयु । भरत, ऐरावत क्षेत्रों एवं विजयाधं पर्वतका वर्णन
हे इन्द्र, उरग जीवोंकी उत्कृष्ट आयु निश्चय ही २१ के दूने अर्थात् ४२ सहस्र वर्षों की होती है। जिनेन्द्रने संशय निवारण हेतु ऐसा कहा है। नभचर जीवोंकी उत्कृष्ट आयु ७२ सहस्र वर्ष की बतायी है। कहीं-कहीं क्षेत्रापेक्षया अपने-अपने कर्मार्जनके अनुसार पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंकी उत्कृष्ट आयु ३ पल्योपमकी जिस प्रकार कथित है, तदनुसार ही मैंने भी कही है।
मायाचारी, कुपात्रोंको दान देनेवाले तथा आर्तध्यानके वश मरनेवाले अज्ञानी जीव तिथंच गतिमें उत्पन्न होते हैं, इनका कथन इसी प्रकार किया गया है। अब मनुष्योंके विषयमें कहता हूँ। पुण्ययोग ऐसे ३० स्थान हैं; पुनः और भी ९६ अन्तर्वीप जानो।
- तिर्यंच लोककी लक्ष्मीसे सुशोभित, मानुषोत्तर पर्वत द्वारा परिवेष्टित, १५ का तीन गुना अर्थात् ४५ लाख महायोजन प्रमाण, तथा द्वीपोंका राजा-प्रधान जम्बूद्वीप है, जो १ लाख महायोजन प्रमाण है । उसकी दक्षिण-दिशामें भरतवर्ष क्षेत्र स्थित है, जिसका विस्तार ५२६ योजन १० ६ कला सहित (अर्थात् ५२६६६) कहा गया है।
ऐरावत क्षेत्रका भी इसी प्रकार जानना चाहिए, अधिक विस्तारसे क्या लाभ ? उसकी उत्तर तथा दक्षिण दिशामें अकृत्रिम रौप्यमय विजयाध पर्वत स्थित है।
घत्ता-हे दशशत नयन-इन्द्र, उसका विस्तार ५० योजन प्रमाण तथा उसकी मोटाई और ऊँचाई अपने मनमें २५ योजन प्रमाण जानो ॥२०६॥
१४
विविध क्षेत्रों और पर्वतोंका प्रमाण हिमवन्त पर्वतका विस्तार १०५२ योजन १२ कला सहित अर्थात् १०५२१३ कहा गया है। उसकी ऊँचाई १०० योजन जानना चाहिए। इसी प्रकार शिखरी पर्वतका वर्णन भी जानना चाहिए। हैमवत क्षेत्रका विस्तार २१०५ योजन ५ कला सहित अर्थात् २१०५५ कहा गया है। हैरण्यवत क्षेत्रका भी इतना ही विस्तार जानो। अब महाहिमवन्त पर्वतका जितना विस्तार है, सो उसे सुनो। महाहिमवान् पर्वत का विस्तार ४२१० योजन १० कला सहित अर्थात् ४२१०१६ तथा ५ उसकी ऊँचाई २०० योजन जानो। इतना ही विस्तार जिनेन्द्रने भव्योंके लिए रुक्मि-गिरीन्द्रका कहा है । हरिवर्ष और रम्यक क्षेत्रका विस्तार ८४२१ योजन १ कला सहित अर्थात् ८४२११२ जानो तथा अपने मनमें उसका अनुभव करो।
__निषध पर्वतका विस्तार १६८४२ योजन २ कला सहित अर्थात् १६८४२३२२ जानो। उसकी ऊँचाई ४०० योजन जानो। नील पर्वतका भी इसी प्रकारका प्रमाण, विस्तार एवं ऊँचाई कहना .. चाहिए तथा प्रश्न करनेवालेका संशय दूर करना चाहिए ।
इसी प्रकार अरहन्त देवने शुभ स्नेहपूर्वक मनमें चिन्तित विदेह क्षेत्रका विस्तार ३३६८४ योजन ६ कला सहित अर्थात् ३३६८४६ कहा है।
३१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org