Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 353
________________ २५० बड्डमाणचरिउ [१०. २१. ६परिमियाउ अन्नोन्न वियारण कोहानलहु वास जे मारण । पढम-नरइ महि जंति असन्निय जीव दुक्ख-पूरिय अपसन्निय । सक्कर पहिं गच्छंति सरीसव रउरव-नरइ पक्खि सुणि वासव । तुरियइ कसण काय महि भीसण जंति महोरय कक्कस नीसण । पंचमियहि पयंड पंचाणण तम पहि महिलउ परणर-माणण । सत्तमियई नर तिमि उप्पजहिँ वइर-वसेण भिडंति ण भज्जहि । सत्तम नरइ नित्त न हवइ नरु पावइ तिरियत्तणु दुह-तप्परु । मघविहि णिग्गउ कोवि णरत्तणु लहइ अरिट्ठहे देसवइत्तणु। अंजणाहि आयउ पंचमगइ पावइ पेइडेवि केवल संतइ। आइउँ सेलहि वंसहि घम्महिं कोवि होइ तित्थयरु अरम्महि । नउ सलाय पुरिसत्तणु पावहिं नर तिरियवि मुणिवर परिभावहिं । घत्ता-सव्वत्थवि माणुसु संभवइ एम भणहिं जिण सामिय । उड्डगइ गामि हलहर सयल कन्ह अहोगइ-गामिय ॥२१४॥ 15 २२ दुण्णिरिक्ख पडिसत्तु-वियारण हुंति कयावि ण वप्प-हलाउह तिणि काय पावंति णरत्तणु वायर-पुह वि-तोय पत्तेयई पुण्ण-सलायत्तणु ण सतामस तिरियलोउ अक्खिउ एवहिं पुणु पढमावणिपविचित्ता णामें तहिँ खर-वहुलु खंडु पढमिल्लउ णव-पयार-भवणामर-भूसिउ सोवि पमिउँ चउरासी-सहसहिं तिज्जउ जलवहलक्खु समक्खिउ तहिं णारय णिरु रणु पारंभहिं पाव-वहुल छह अवरावणियउँ णरयहो नीसरेवि णारायण । किं वहुवेण तहय चक्काउह । जेम तेम जाणहिं तिरियत्तणु । हुंति कयाविहु देवए एयई। अमयासण लहति आजोइस । णरय-णिवासु सहसलोयण सण । आहासिय जिणेण मह-धामें। सोलह सहस वि जोयण भल्लउ । पंक-बहुलु वीयउ जे समासिउ । असुर-भूवं रक्खस तहिं निवसहि। सो असीइ-सहसे हिं समक्खिउ। अवरुप्परु विउरुव्वि विरुभहिं। जिणवरु मुएवि ण अणि मुणियउ । ३. J. V. °रि । ४. D. के । ५. D. J. पयडेवि । २२. १. D. भव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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