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१०. १६. ७ ]
हिन्दी अनुवाद
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घत्ता - देवकुरुमें ११८०० चैत्यालय हैं । यही प्रमाण गुणालय जिनेन्द्र ने उत्तरकुरुमें भी कहा है ॥२०७॥
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प्राचीन जैन भूगोल - पर्वतों एवं सरोवरोंका वर्णन
जम्बूद्वीप मध्य ६ भोगभूमि क्षेत्र स्थित हैं तथा कवियों द्वारा वर्णित ३ रमणीक कर्मभूमि क्षेत्र हैं । हिमवत् पर्वतपर सुन्दर जलसे परिपूर्ण पद्म नामक सरोवर सुशोभित है । जिसका विस्तार ५ सौ योजन तथा वह १० योजन गहरा और १ सहस्र योजन दीर्घ है । हे शक्र, इस सरोवरका ( इस प्रकार ) जो जितना प्रमाण कहा है, उतना ही मनमें समझो ।
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शिखरिन् पर्वत के शिखरपर स्थित, भ्रमर-पंक्ति से सदा मण्डित पुण्डरीक सरोवर है, जिसका प्रमाण स्वर्णमय कमलोंसे मण्डित महापुण्डरीक सरोवरसे दुगुना है । गुणोंसे युक्त यह सरोवर रुक्मिगिरि शिखरपर स्थित कहा गया है ।
नील पर्वत पर स्थित मनोहर केशरी नामक सरोवर है, जिसका प्रमाण उससे ( महापुण्डरीककी अपेक्षा ) दूना है ।
निषेध - पर्वत पर स्थित तथा देवों द्वारा मान्य तिगिंछ सरोवरका भी उतना ही प्रमाण १० जानो । सज्जनोंके मनकी तरह नित्य प्रसन्न, निर्मल जलवाले महापद्म नामक सरोवरका उससे आधा प्रमाण जानो । यह सरोवर महाहिमवत् पर्वतके शिखरपर स्थित है । जिसपर कि क्रीड़ा करते हुए देवोंका मेला-सा लगा रहता है ।
उन सरोवरोंके मध्य में श्री, ह्री, धृति, कान्ति (कीर्ति), बुद्धि तथा लक्ष्मी नामकी क्रीड़ाओं में कुशल एवं प्रसिद्ध देवोंकी देवियाँ निवास करती हैं ।
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घत्ता - पद्म, महापद्म, तिगिछ, केशरी, महापुण्डरीक, पुण्डरीक नामक सरोवरोंसे जो नदियाँ निकली हैं, उन्हें भी सुनो ॥ २०८ ॥
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भरतक्षेत्रका प्राचीन भौगोलिक वर्णन - नदियाँ, पर्वत, समुद्र और नगरोंको संख्या
सर्वप्रथम (१) गंगा व (२) सिन्धु नदी, तत्पश्चात् (३) अपनी निरोधक धाराओंसे गुफाओंको भर देनेवाली रोहित नदी । इसके बाद (४) रोहितास्या और (५) हरि नामकी नदियाँ हैं । पुनः (६) हरिकान्ता उत्तम, (७) सीता नामकी नदी तथा (८) सीतोदका और (९) नारी व नरकान्ता नामकी नदियाँ तत्पश्चात् निरन्तर जलप्रवाही (११) कनककूला नामकी नदी, पुनः मुनियोंके ज्ञान द्वारा जानी गयी (१२) रूप्यकूला नामकी प्रसिद्ध नदी है । तदनन्तर (१३) रक्ता व (१४) रक्तोदा नदियाँ हैं । इनकी सहस्रो सहायक नदियाँ भी हैं ऐसा जानो ।
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समस्त अमरगिरि - सुमेरु पर्वत ५ हैं । कुल धरणीधर ३० हैं । वक्षारगिरि ८० तथा कुल क्षेत्र ३५ हैं । १५की ४ गुनी अर्थात् ६० विभंग नदियाँ प्रवहमान रहती हैं । कुरुवृक्ष १० तथा देदीप्यमान २० गजदन्त हैं । समस्त वृषभ गिरि ७० मिश्रित १०० अर्थात् १७० जानो । उतने ही विजयार्ध गिरि हैं, ऐसा अपने मनमें मानो ।
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