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८. १७. १५] हिन्दी अनुवाद
१९७ घत्ता-सुन्दर धर्मरूपी रथके चक्रके समान, मनुष्यों, विद्याधरों एवं पुरन्दरोंको हर्षित १५ । करनेवाले तथा तपश्रीके निलय-मुनिराज श्रीधर द्वारा प्रशंसित वे नेमिचन्द्र यशसे विभूषित रहें ॥१७०॥
आठवीं सन्धिको समाप्ति इस प्रकार प्रवर गुणरूपी रत्नोंके समूहसे मरे हुए विबुध श्री सुकवि श्रीधर द्वारा विरचित साह श्री नेमिचन्द्र द्वारा अनुमोदित श्री वर्धमान तीर्थंकर देवके चरित्रमें नन्दन मुनिका
प्राणत-कल्पमें गमन नामका आठवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ। संधि ॥ ८॥
आश्रयदाताके लिए आशीर्वचन जिसका चित्त अज्ञानरूपी अंधकारसे युक्त नहीं हुआ, जिसके यशोंसे संसार धवलित हो उठा है, जो अपने कुटुम्बरूपी आकाशमें पूर्णचन्द्रके समान हैं, ऐसे उस नेमिचन्द्रकी क्या प्रशंसा न की जाये?॥
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