Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 324
________________ हिन्दी अनुवाद २१ राजा कूल यहाँ पारणा लेकर वे अतिमुक्तक नामक श्मशान भूमिमें पहुँचे, जहाँ भव नामक रुद्रने उन पर घोर उपसर्ग किया उस राजा कूल विनयपूर्वक सम्मान कर जिनेन्द्र महावीरको भक्तिसहित आहार दान दिया । समयानुसार उपलब्ध विशुद्ध आहार ग्रहण करके वे वीर जिनेन्द्र उस राजाके भवनसे पुनः वापस लौट गये । उसी समय आकाशसे युवाजनोंके मनको हरनेवाली ऋद्धिपूर्ण रत्नवृष्टि तथा पुष्पवृष्टि पड़ने लगी । गम्भीर निनाद करनेवाले दुन्दुभि बाजे बजने लगे । मन्द-सुगन्धिपूर्णं वायु बहने लगी । देवोंने साधु-साधुका जयघोष किया । ( इन दिव्य पंचाश्चर्यों से ) कूल नामक वह नृप ५ बन्धुबान्धवों सहित मनमें बड़ा सन्तुष्ट हुआ । निरन्तर भ्रमण करते रमते हुए वे जिनेन्द्र एक महाभीषण अतिमुक्तक नामक श्मशानभूमि में रात्रि के समय प्रतिमायोगसे स्थित हो गये । उसी समय भव नामक एक बलवान् रुद्रने उनपर महान् उपसर्ग किया, किन्तु वह उन्हें जीत न सका । इसी कारण उस रुद्रने उन जिनेन्द्रको धीर-वीर समझकर उनके अतिवीर एवं महावीर नाम घोषित किये । ९. २२. १२ ] जिनेन्द्र महावीर परिहार- विशुद्धि संयमपूर्वक महातपरूपी लक्ष्मीमें रत रहे और मन्मथके - समूहका निवारण कर उन्होंने १२ वर्ष पूर्ण कर लिये । उन्होंने ऋजुकूला नदीके तटवर्ती महान् शाल वृक्षके नीचे एक शिलातलपर बैठकर - धत्ता - षष्ठोपवासपूर्वक एकाग्र मनसे वैशाख शुक्ल पक्षकी दसमीके दिन, अन्धकारका क्षय करने वाला सूर्य, जब अस्ताचलकी ओर जा रहा था - ॥१९१॥ २२ महावीरको ऋजुकूला नदीके तौर पर केवलज्ञानकी उत्पत्ति हुई । तत्पश्चात् ही इन्द्रके आदेश से यक्ष द्वारा समवशरणको रचना की गयी २२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only ܘܐ तब ध्यानरूपी अग्निज्वालासे गहन घातिया कर्मरूपी ईंधन जलाकर सिद्धार्थं नरेन्द्रके उस स्तनन्धय - पुत्रको केवलज्ञान उत्पन्न हो गया । इसी समय घातिया कर्मोंके क्षय होनेके कारण वे उत्तम दश अतिशयोंको धारण कर सुशोभित हुए । केवलज्ञानके बलसे उन्होंने शीघ्र ही समस्त लोकालोकको समझ लिया । सुरवरोंने भी गुरु भक्ति करके तथा माथेपर हाथ रखकर ( उनकी ) वन्दना की । इसी बीच में जब हरि - इन्द्रने आदेश दिया तब यक्षने एक समवशरणकी रचना की । वह १२ योजन प्रमाण विशाल था, जो गगनतल में नीला नीला जैसा भासता था । तथा जो रत्नमय धूलिसे बने वलय के समान शाल ( परकोटों ), चतुर्दिक् निर्मित चार मानस्तम्भोंसे सुशोभित मंजुल जल तरंगोंवाले चार सरोवरों, जलसे परिपूर्ण तथा कमल पुष्पोंसे समृद्ध परिखाओं तथा लोगोंके मनको सुहावनी लगनेवाली वल्ली-वनोंसे वेष्टित मणिमय वेदिका - ( से वह समवशरण १० शोभायमान था ) और — घत्ता - उत्तम विधियोंसे रचित, मणियों द्वारा खचित ( जटित ), कनक - मय परिधि से परिपूर्ण, रौप्यमय एवं गगनचुम्बी गोपुर मुखोंसे रमणीक - ॥ १९२॥ १५ www.jainelibrary.org

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