________________
बडमाणचरिउ
कडवक सं.
पृष्ठ
मूल/हिन्दी अनु. सन्धि ४ ज्वलनजटी राजा प्रजापतिके यहां जाकर उनसे भेंट करता है.
८०-८१ प्रजापति नरेश द्वारा ज्वलनजटीका भावभीना स्वागत.
८०-८१ ज्वलनजटी द्वारा प्रजापतिके प्रति आभार-प्रदर्शन व वैवाहिक तैयारियाँ.
८२ज्वलनजटीकी पुत्री स्वयंप्रभाका त्रिपृष्ठके साथ विवाह.
८४-८५ हयग्रीवने ज्वलनजटी और त्रिपृष्ठके विरुद्ध युद्ध छेड़नेके लिए अपने योद्धाओंको ललकारा. ८४नीलकण्ठ, अश्वग्रीव, ईश्वर, वज्रदाढ, अकम्पन और धूम्रालय नामक विद्याधर योद्धाओंका ज्वलनजटी तथा त्रिपृष्ठके प्रति रोष प्रदर्शन.
८६- ८७ हयग्रीवका मन्त्री उसे युद्ध न करनेकी सलाह देता है.
८६- ८७ विद्याधर राजा हयग्रीवको उसका मन्त्री अकारण ही क्रोध करनेके दुष्प्रभावको समझाता है.८८हयग्रीवके मन्त्री द्वारा हयग्रीवको ज्वलनजटीके साथ युद्ध न करनेकी सलाह. ९०- ९१
अश्वग्रीव अपने मन्त्रीकी सलाह न मानकर युद्ध-हेतु ससैन्य निकल पड़ता है. ९०- ९१ ११. राजा प्रजापति अपने गुप्तचर द्वारा हयग्रीवकी युद्धकी तैयारीका वृत्तान्त जानकर अपने सामन्त-वर्गसे गूढ़ मन्त्रणा करता है.
९२- ९३ राजा प्रजापतिकी अपने सामन्त-वर्गसे युद्ध-विषयक गूढ़ मन्त्रणा.
९२- ९३ मन्त्रिवर सुश्रुत द्वारा राजा प्रजापतिके लिए सामनीति धारण करनेकी सलाह. ९४-- ९५ १४. सामनीतिका प्रभाव.
९६- ९७ सामनीतिके प्रयोग एवं प्रभाव.
९६- ९७ सामनीतिके प्रयोग एवं प्रभाव.
९८- ९९ राजकुमार विजय सामनीतिको अनुपयोगी सिद्ध करता है.
९८-९९ गुणसागर नामक मन्त्री द्वारा युद्धमें जानेके पूर्व पूर्ण-विद्या सिद्ध कर लेनेकी मन्त्रणा. १००-१०१. त्रिपष्ठ और विजयके लिए हरिवाहिनी, वेगवती आदि पांच सौ विद्याओंकी मात्र एक सप्ताहमें सिद्धि.
१००-१०१ २०. त्रिपृष्ठका सदल-बल युद्ध-भूमिकी ओर प्रयाण.
१०२-१०३ विद्याधर तथा नर-सेनाओंका युद्ध-हेतु प्रयाण.
१०४-१०५ २२. नागरिकों द्वारा युद्ध में प्रयाण करती हुई सेना तथा राजा प्रजापतिका अभिनन्दन तथा
आवश्यक वस्तुओंका भेंट-स्वरूप दान. २३. त्रिपृष्ठ अपनी सेनाके साथ रथावर्त शैल पर पहुँचता है.
१०६-१०७ रथावर्त पर्वतके अंचलमें राजा ससैन्य विश्राम करता है.
१०६-१०७ चतुर्थ सन्धिको समाप्ति.
१०८-१०९ आश्रयदाताके लिए कविका आशीर्वाद.
१०८-१०९ सन्धि ५ १. (विद्याधर-चक्रवर्ती ) हयग्रीवका दूत सन्धि-प्रस्ताव लेकर त्रिपृष्ठके पास आता है. ११०-१११ २. (हयग्रीवका) दूत त्रिपृष्ठको हयग्रीवके पराक्रम तथा त्रिपृष्ठके प्रति अतीतकी परोक्ष सहायताओंका स्मरण दिलाता है.
११०-१११
१७. १८. १९.
२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org