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७.१०.१२]
हिन्दी अनुवाद
अवन्ति देश एवं उज्जयिनो नगरीका वर्णन इसके अनन्तर, जहाँ दो सूर्य एवं दो चन्द्र दीपक हैं, ऐसे जम्बूद्वीपमें सुमेरु पर्वतके दक्षिणीदिशा-भागमें श्रेष्ठ नन्दन वृक्षोंकी सघन छायावाले, नन्दी-सरोवरोंसे सुन्दर एवं क्रीडा-शील देवोंसे भूषित घाटियोंवाले भरतवर्षमें समस्त समृद्धियोंसे सम्पन्न स्वनामधन्य एवं अतिविस्तीर्ण अवन्ती नामका देश है, जहाँकी पृथिवी ( कहीं भी) धान्यसे रहित ( दिखाई ) नहीं ( देती) है, जहाँकी भूमि मुनिपदोंकी रजःस्पर्शसे पवित्र है, जहाँ कोई भी पुरुष ऐसा न था जो कांचन, धन-धान्य ५ तथा रम्य मणि-रत्नोंसे रहित हो, उस द्रव्यके उपबन्धसे जहाँको वसुधापर सज्जनगण जिनभक्तिसे अति विकसित वदन होकर रहते हैं, जहाँकी कामिनियाँ रूपश्रीसे रहित नहीं हैं तथा जो मत्तगजकी लीलागतिसे गमन करती हैं। रूपश्री भी ऐसी न थी जो कि सौभाग्यसे रहित हो और जो अमृताशन वर्ग ( देवगणों) से अनुमोदित न हो, सौभाग्य भी ऐसा न था जो विनयशील युक्त न हो, शील भी ऐसा न था जो सुजनोंकी प्रशंसासे युक्त न हो। जहाँकी नदियाँ ऐसी न १० थीं जो जलरहित हों। जल भी ऐसा न था कि जो शीतलतासे युक्त न हो। जहाँके वृक्ष कुसुमरहित नहीं हैं तथा ऐसा कोई वृक्ष न था जो नभस्तलको स्पर्श न करता हो। उस अवन्ति देशमें उज्जयिनी नामकी एक पुरी है जो देवोंके मनको भी हर्षित करती है ।
घत्ता-जिस उज्जयिनी नगरीकी बुधजनोंके नेत्रोंको आनन्दित करनेवाली मणियोंसे दीप्त गृह पंक्तियाँ देव मन्दिरों (स्वर्ग) पर हँसती-सी प्रतीत होती हैं। जहाँ अनेक हाट-बाजार लगते १५ हैं, जिनमें लोगोंकी भीड़ लगी रहती है ।।१४५।।
उज्जयिनीको समृद्धिका वर्णन । वहां राजा वज्रसेन राज्य करता था
जो नगरीके श्री-सम्पन्न कंचनमय परकोटों एवं जलपूरित परिखासे अलंकृत है। जहाँके ' गोपूरोंसे नभचर भी प्रतिस्खलित हो जाते हैं; देवगृहोंके समान ( जहाँके ) गृहोंकी छज्जाएँ निशिचरोंके लिए बाधक बन जाती हैं । जहाँ ( के निवासी उस ) पुरीको छोड़नेसे प्राणहत जैसे हो जाते हैं। जहाँपर अपराध करनेवाला प्रियतम एवं श्वासकी सुगन्धिसे निर्मथित भ्रमर-समूह मदनसे क्षत-विक्षत रमणियों द्वारा हटाये जानेपर भी हटते नहीं। जहाँके लोगोंके धनकी प्रचुरता देखकर कबेर भी अपने मनमें लज्जित होकर अपनी श्रीकी निन्दा किया करते हैं, जो नग सुखकरी है, जनोंके चित्तको हरनेवाली है। भुजंगको धारण करनेवाली चन्दनलताके समान है, महाविपुल गीर्वाणपुरी स्वर्गके समान है, विबुधोंसे अलंकृत है, तथा जो विकलजनोंको हर्षित करनेवाली है, उसी उज्जयिनी नगरीमें वज्रसेन नामक एक राजा (राज्य करता) था जो वज्रपाणि-इन्द्रके समान अनेक विभूतियोंवाला था। वह वज्रशरीरी अपने समस्त बन्धुओंको सुख देनेवाला सुन्दर एवं वज्र-चिह्नसे अलंकृत हाथोंवाला था।
घत्ता-जिसके उरस्तलमें लक्ष्मी और मुखमें शतदल कमल-मुखी श्रुतदेवीरूपी सौतको देखकर ही मानो उस ( राजा वज्रसेन ) की, चन्द्रमाकी धवलिमाको भी जीत लेनेवाली कीर्ति रूपी महिला कुपित होकर ( दशों दिशाओंमें ) ऐसी भागी कि फिर लौटी ही नहीं ॥१४६॥
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