Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 283
________________ वडमाणचरिउ [८.२.६सव्वित्तु कलाहरु हरिसयारि पुण्णिदु व सुवणहँ तम-वियारि । कालेण विहूसण फुरिय काउ सो अहिणव-जोव्वणवंतु जाउ। अण्णहिं दिणि तेण धणजएण ससिहर-सम-जस-धवलिय-जएण । पणवेप्पिणु खेमंकर-पयाई भवियण-पयणिय-सिव संपयाई । णिसुणेवि धम्मु एक्के मणेण वइराइल्लैं पुणु तक्खणेण । पत्ता-णिय रज्जु समप्पेवि णिय-सुवहो अइरावइ-करि-कर-सम-भुवहो । तहो जिणहो मूलि दिक्खा गहिय वटुंति विसय तण्हा महिय ॥१५५॥ 10 णीसेस-णरिंदाहीस लच्छि दुल्लह पावेविणु पिय समच्छि । णरणाह णिहिल मणे किंकरत्तु धारंत वइरि सव्वाहरत्त । सञ्चरणायड्डिय भत्ति तेम फुल्लिय सयदल दलि भसलु जेम । एत्थंतरे एक्कहिं दिणे सहत्थु वियसंत-कणय-कंकणय-हत्थु । जा अच्छइ सइँ पिय-मित्त-राउ माणिणि-यण-मणे पजाणंतु राउ । ता केणवि भणिउं समावि देव पणव वि सामिय महु मण्णि सेव । पहरण सालहिँ सहसारु चक्कु उप्पण्णु वियारिय-वेरि-चक्कु । अइ-दुण्णिरिच्छु दिणयर-समाणु जक्खाहिव-गण-रक्खिजमाणु । घत्ता-तत्थवि विप्फुरिय-रयण-वरिउ हुउ दंडु रयण-रुवि-कवुरिउ । करवालु वि-सारय-गयण-पहु सियसत्तु छणिंदु व जणे दुलहु ॥१५६।। 10 सहुँ कागणी मणे कोसगेहि महु उवरि पसाउ करेवि वुज्झु सामिय दौर-ट्ठिय रयण-भूव कण्णा-सेणावइ-थवइ-मंति तहो मणे ण किंपि मय-भाउ जाउ धारंतहो तासु अणुव्वयाई देवाहमि उप्पाइय पहिट्ठि हुउ चम्मरयणु रुंजिय दुरेहि । आयड्डिय पुण्ण-फलेण तुज्झु । भूवलयहो मंडण अइ-सरूव । गिहवइ-तुरंगु-करि विहिय-संति । गरुवउ हवेवि णिम्मय-सहाउ । सत्त रयण समलंकिय-पयाई। इच्छहि तुह तगिय पसण्ण-दिहि । ४. D. क्कें । ५. D. वइराल्लें। ३. १. D. पजणंतु । २. D. वयारिय । ३. D. सारय । ४. १. D.णि । २. D. दारट्टि । ३. J. V. णिय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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