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३.२६.२]
हिन्दी अनुवाद राजकुमार रत्नाभरणोंसे अलंकृत होकर राजदरबारमें सिंहासनके ऊपर बैठा था, तभी एक व्यक्ति । वहाँ आया। उसने अपने दोनों कर-कमलोंको मुकुलित कर विनयपूर्वक उसके चरण-कमलोंमें नमस्कार कर तथा अवसर प्राप्त कर सभीका कल्याण करनेवाले राजाके आगे खड़े होकर प्रकट रूपमें इस प्रकार निवेदन किया-'हे धरणीनाथ, आपने तीक्ष्ण खड्गसे इस पृथिवीकी सुरक्षा की है तथा करोंसे उसका पालन किया है। ( अब इस समय ) पुरजनोंको एक प्रवर शक्तिशाली पंचानन–सिंह पीड़ा दे रहा है। अहो, संसारमें कर्मरूपी शत्रु ( कितना ) बड़ा बलवान् है। जनपदको मार डालने हेतु सिंहके छलसे क्या यमराज स्वयं ही वेगपूर्वक आ गया है ? अथवा क्या कोई महान् असुर आ गया है, अथवा आपके पूर्वजन्मका कोई दुर्द्धर, दुर्वार एवं विध्वंसक ? नरेन्द्रसमूह से वित हे देव, इस प्रकारका विकारी दुष्ट सिंह कभी भी नहीं देखा गया।
घत्ता-गुणयुक्त प्रियतम, पुत्र आदिको भी छोड़-छोड़कर लोग अपने-अपने जीवनकी कामनासे भयके कारण शीघ्रतापूर्वक भागे जा रहे हैं" ॥६३।।
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राजकुमार त्रिपृष्ठ अपने पिताको सिंह मारने हेतु जानेसे रोकता है श्री-शोभा सम्पन्न वह धरणीनाथ प्रजापति उस ( नागरिक ) का निवेदन सुनकर अपने मनमें बड़ा सन्तप्त हुआ। कानोंमें ( बातोंके ) पड़नेपर कहो कि किसको सन्ताप नहीं होता? "हाय, अब अशुभका निमित्त आ गया है।" इस प्रकार विचारकर गम्भीर एवं धीर शब्दोंसे वह राजा विशाल सभा-भवनको पूरता हुआ बोला-"खेतोंकी सुरक्षाके निमित्त तृण द्वारा निर्मित एक कृत्रिम मनुष्य बना दिया जाता है जिनसे दसों दिशाओंमें नेत्रोंको फैलाकर चलनेवाले मृगगण भी धान्य चरनेमें (दूरसे ही ) भयभीत होकर भाग जाते हैं फिर मैं तो निरन्तर ही उस ५ प्रजाके बीच में रहता हूँ। समस्त पृथिवीपर ( मैंने ) सम्यक् प्रकार प्रभुता प्राप्त की है, किन्तु जो हताश जनपदके भयको दूर नहीं करता फिर भी जय-स्वामी (विजयी-सम्राट् ) बना फिरता है, वह निश्चय ही उस चित्रगत राजा-जैसा है, जिसे प्रजा अनमित सिरसे देखती है तथा उसे असार समझती है। यदि मैं इस दुष्ट सिंहको मारकर जनपदका भय न मिटाऊँगा, तो लोकोंके घरोंको भरता हआ मेरा अपयश अवश्य ही ( दूर-दूर तक ) फैलेगा।" इस प्रकार कहकर जब सिंहके १० मारनेके निमित्त वह राजा उठा, तब शत्रुजयी उस त्रिपृष्ठने तुरन्त ही विनयपूर्वक पिताको रोका और कहा
घत्ता-“यदि मेरे रहते हुए भी पशु-निग्रह हेतु तलवार हाथमें लेकर आपको उठना पड़े अथवा वैरीके क्रोधको देखकर आपको क्रोधित होना पड़े, तब फिर हम-जैसे आपके पुत्रोंसे क्या लाभ ?" ॥६४॥
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त्रिपृष्ठ उस भयानक पंचानन-सिंहके सम्मुख जाकर अकेला ही खड़ा हो गया
इस प्रकार निवेदन कर तथा नरेन्द्रको रोककर, फिर उसी ( नरेन्द्र ) की आज्ञा लेकर वह प्रथम उपेन्द्र (–नारायण )-त्रिपृष्ठ नामक पुत्र अपनी सेनाके साथ क्रोधाग्निसे दीप्त उस बलवान सिंहके मारनेके निमित्त चला।
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