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४. २४. १७] हिन्दी अनुवाद
१०९ सकलांगवाले घोड़ोंको विश्राम करने हेतु बाँध दिया। वाणासण-सर-धनुषबाणको दूर ही छोड़कर १० पसीनेसे तर नरेश्वर वायु-प्रवाहमें सोने लगे। “भूमिको जीव-जन्तु रहित करो, ऊँटोंको शीतल जल पिलाकर स्नान कराओ। ( यहाँ ) काण्डपट ( एकान्त विभागीय परदा ) लगा दो, ( अपने ) रथको हटा लो, यहाँपर उत्तम कोटिके सुन्दर घोड़ोंको बाँधा जाये। बैलोंको लेकर ( चराने हेतु ) कोई जंगलमें चला जाये और कोई घास, जल, काष्ठ ( इंधन ) तथा तेल लाने हेतु चला जाये।" इस प्रकार स्वामियों ( हाकिमों ) ने भृत्यजनोंको आदेश दिये। ठीक ही कहा गया है कि सेवकोंका १५ अपने ऊपर कोई अधिकार नहीं होता। हरि-त्रिपृष्ठके साथ ही साथ अन्य नरेन्द्र अपने-अपने सुसज्जित आवासोंमें प्रविष्ट हुए । ( उस समय ) सभी भव्य सामन्तों एवं माण्डलिकोंने ( त्रिपृष्ठकी प्रतिज्ञा सुनकर ) इस प्रकार प्रतिज्ञा की
घत्ता-हयगल ( अश्वग्रीव ) का गला तोड़कर यदि उसका क्षय न कर दूं तो मैं नेमिचन्द्रजैसे प्रकट यशका भागी न होऊँ और श्रीगृहके समान जन-मनका हरण करनेवाले श्रीधर कविको २० छोड़कर अग्निके मुखमें जा पहुँ ।।१४।।
चतुर्थ सन्धिको समाप्ति इस प्रकार प्रवर गुण-रत्न-समूहसे परिपूर्ण विबुध श्री सुकवि श्रीधर द्वारा विरचित साधु (स्वभावी)
श्री नेमिचन्द्र द्वारा अनुमोदित श्री वर्धमान तीर्थकर देवके (प्रस्तुत) चरित काव्यमें __ 'सेना-निवेश-विस्तार' नामक चतुर्थ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥सन्धि ४॥
आश्रयदाताके लिए कविका आशीर्वाद श्री मज्जिनाधिपके चरणयुगलकी गन्धोदक-धाराके अभिवन्दनसे पवित्र हुआ है समस्त गात्र जिसका, ऐसा तथा देवों द्वारा प्रशंसित गुणवाला, एवं गुणीजनोंकी संगति करनेवाला वह चतुर बुद्धि नेमिचन्द्र ( कवि श्रीधरका आश्रयदाता ) इस लोकमें चिरकाल तक जीवित रहे।
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