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५. १७. २०] हिन्दी अनुवाद
१३१ हुए बाणोंसे भटजनोंके शिरस्त्राणोंसे युक्त सिरोंको ही उड़ा दिया। युद्धभूमिमें चामर ढुरते हुए आकाशमें नाचती हुई महाध्वज पताकाओंसे चतुर योद्धाओंके निरन्ध्र व्यूह-बन्धको भी छिन्न-भिन्न कर दिया। छत्र गिर गये, गात्र ढीले पड़ गये, महाभयंकर हाथीको देखते ही, सवाररहित घोड़े १० भागकर उन्मार्गगामी हो उठे और मारनेको इच्छावाले उस क्रुद्ध हरिविश्व द्वारा सूर्यकिरणोंको भी ढंक देनेवाले अगणित शरों द्वारा लगे हुए सैकड़ों घावोंसे पीड़ित होकर सहसा ही मृत्युको प्राप्त हो गये।
घत्ता-( हरिविश्वके बाणों ने ) कृष्ण ( त्रिपृष्ठ ) की सेनाको चारों ओरसे उसी प्रकार संकोच (घेर ) लिया, जिस प्रकार रात्रिमें चन्द्रमा तिमिर-समूहका संहार करनेवाली अपनी १५ तीक्ष्ण किरणोंसे सर्वत्र ही कमलवनको संकुचित कर देता है ॥११०॥
तुमुल-युद्ध-हरिविश्व और भीमको भिडन्त मन्त्री हरिविश्वको अपने बाहुबलको इस प्रकार प्रकट करते हुए देख निर्भीक भीम नामक (त्रिपृष्ठ के ) योद्धाने उसे ललकारा और उस ( भीम ) के धनुष की टंकारसे गगन प्रतिध्वनित हो उठा। . भीमकी ललकारको सुनकर, अपना सिर धुनकर, रणभारसे सन्तुष्ट, युद्धशूर, भीमके शत्रु उस हरिविश्वने पवनके ( वेगके ) समान जाकर, उस भीमके सम्मुख उपस्थित होकर, दपके साथ ५ धनुषकी टंकारसे भुवनको भर दिया तथा 'हुंकार' करके उत्तम घोड़े जोतकर रथको हाँककर शत्रुओंके प्राणोंको हरनेवाले अगणित बाणोंसे महान् संहार किया, किन्तु वह (हरिविश्व ) स्वयं भी सहसा घायल हो गया। तत्काल ही उसके लौहमय बाण-समूह (शत्रुओंके ) हृदयोंमें उतरने लगे, ( उनके ) वक्षस्थलोंको दलने लगे। उसने आकाशमें चलती हुई अपने बाणोंकी पंक्तियोंसे वैरियोंके करीन्द्रों एवं गिरीन्द्रोंका दलन कर डाला। तब संगरमें भीषण हरिणाधीशने निःशंक १० होकर 'अर्धमृगांक' नामक बाणसे उस (हरिविश्व ) के धनुषको तोड़ डाला और ध्वजपटको फाड़ डाला।
घत्ता-(भीम-हरिणाधीशके उस पराक्रमसे ) विद्याधर-गण सहसा ही तुरंगम-रथ छोड़-छोड़कर हाहाकार करते हुए देवों और मनुष्योंके देखते-देखते ही उलटे हो-होकर गिरने लगे॥११॥
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