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सन्धि
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मगधदेशके प्राकृतिक सौन्दर्यका वर्णन यहीं भरतक्षेत्रमें विख्यात, सारभूत, देवोंके मनको हरण करनेवाला, विस्तीर्ण प्रदेशवाला एवं देशोंके राजाके समान मगध नामका देश स्थित है।
जहाँ गुरुतर पर्वतोंके जल-स्रोतोंके प्रवाहकी ध्वनिसे युक्त श्रेष्ठ एवं सुन्दर कन्दराओंमें अपनी-अपनी रमणियोंके साथ सुर-असुर एवं विद्याधर सादर क्रीड़ाएँ किया करते हैं, जहाँ पौंड़ा एवं इक्षुके बाड़ोंमें पीलन-यन्त्रोंसे उठते हुए अत्यन्त नये-नये शब्दोंसे श्रोत्र-रन्ध्र बहरे हो जाते हैं
और विभ्रमको प्राप्त जनपदोंसे अन्य कुछ नहीं सुना जाता, जहाँ वृक्षोंसे गिरे हुए पुष्पोंकी रजकी संगवाली ( अर्थात् परागमिश्रित ) नदियाँ अहर्निश प्रवाहित रहती हैं, जो जलके विभ्रमसे समृद्धिको प्रदान करती हैं तथा विद्याधरों, देवों एवं मनुष्योंके हृदयोंका हरण करती हैं, जहाँ नन्दनवृक्षकी शाखाओंपर बैठे हुए कलकण्ठवाले पक्षियोंके मधुर कलरव पथिकजनों द्वारा निश्चल रूपसे स्थित होकर सुने जाते हैं । (ठीक ही कहा गया है कि-) 'सुखकारी-योगको कौन नहीं चाहता ?' जहाँ नदी-नदी अथवा तालाब-तालाबपर हंस-पंक्तियाँ सुशोभित रहती हैं, वे ऐसी प्रतीत होती हैं, मानो शरद्कालीन चन्द्र-त्योत्स्नाकी कान्ति ही हो, अथवा मानो परिभ्रमणकी थकावटके कारण ही वहाँ बैठे हों अथवा मानो वहाँ महीतलपर बैठकर वे सुन्दर-वर्गों में वहाँका कीर्ति-गान ही कर रहे हों।
घत्ता-जहाँ तस्कर, मारी ( रोग ) तथा ( ईति, भीति आदि ) अनीति जरा भी दिखाई १५ नहीं देती। इन्द्रपुरोका प्रतिबिम्ब तथा मनुष्योंके लिए निर्द्वन्द्व राजगृह नामका नगर है ।।४०।।
राजगृह-नगरका वैभव-वर्णन । वहाँ राजा विश्वभूति राज्य करता था। वह राजगृह नगर समस्त नगरोंमें प्रधान तथा उत्तमोत्तम वस्तुरूपी रत्नोंके धारण ( संग्रह ) करनेवाला निधान है। जहाँ स्फटिक-शिलाओं द्वारा बनाया गया विशाल परकोटा है, जिसके शिखरानोंसे आकाश रगड़ खाता रहता है। गोपुरके तोरणोंसे जिस ( परकोट ) की ऊँचाई प्रतिस्खलित है, जहाँके बाजारोंमें सोनेके सुन्दर-सुन्दर आभूषण ही दिखाई देते हैं, जो चन्द्रकान्त एवं सूर्यकान्त मणियोंकी प्रभासे दीप्त है, जो वायु द्वारा फहराती हुई ध्वजा-पताकारूपी चंचल बाहु-लताओंसे युक्त है, जहाँ मेघ ऐसे प्रतीत होते हैं, मानो नीलकान्त मणियोंसे बने हुए हों। जहाँके रत्नमय निलयोंने स्वर्ग-विमानोंको भी जीत लिया था, जहाँ देवगृहके समान प्रतीत होनेवाले भवनोंके शिखरोंसे सूर्यको भी ऊँचा उठा दिया गया है। राजगृहके ( राजभवन ) के द्वारपर सिंह गरजता रहता है। नित्य होनेवाले उत्सवोंसे सज्जन वर्ग हर्षित रहता है, जहाँ तूरके
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