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वडमाणचरिउ
कडवक सं.
पृष्ठः मूल/हिन्दी अनु.
सन्धि
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१. विदेह-देश एवं कुण्डपुर-नगरका वर्णन.
१९८-१९९ २. कुण्डपुर-वैभव वर्णन.
२००-२०१ कुण्डपुरके राजा सिद्धार्थके शौर्य-पराक्रम एवं वैभवका वर्णन.
२००-२०१ राजा सिद्धार्थकी पट्टरानी प्रियकारिणीका सौन्दर्य-वर्णन.
२०२-२०३ ५. इन्द्रकी आज्ञासे आठ दिक्कुमारियाँ रानी प्रियकारिणीकी सेवाके निमित्त आ पहुँचती हैं. २०२-२०३ रानी प्रियकारिणी द्वारा रात्रिके अन्तिम प्रहर में सोलह स्वप्नोंका दर्शन.
२०४-२०५ श्रावण शुक्ल षष्ठीको प्रियकारिणीका गर्भ-कल्याणक.
२०४-२०५ प्रियकारिणीके गर्भ धारण करते ही धनपति-कुबेर नौ मास तक कुण्डपुरमें रत्नवृष्टि करता रहा.
२०६-२०७ माता प्रियकारिणीको गर्भकालमें शारीरिक स्थितिका वर्णन. चैत्र शुक्ल त्रयोदशीको बालकका जन्म.
२०८-२०९ सहस्रलोचन-इन्द्र ऐरावत हाथीपर सवार होकर सदल-बल कुण्डपुरकी ओर चला. २०८-२०९ कल्पवासी-देव विविध क्रीड़ा-विलास करते हुए गगन-मार्गसे कुण्डपुरको ओर गमन करते हैं.
२१०-२११ १२. इन्द्राणीने माता प्रियकारिणीके पास (प्रच्छन्न रूपसे ) एक मायामयी बालक रखकर .
नवजात शिशुको (चुपचाप) उठाया और अभिषेक हेतु इन्द्रको अर्पित कर दिया. २१०-२११ इन्द्र नवजात शिशुको ऐरावत हाथी पर विराजमान कर अभिषेक हेतु सदल-बल सुमेरु पर्वतपर ले जाता है.
२१२-२१३ १००८ स्वर्ण-कलशोंसे अभिषेक कर इन्द्रने उस नवजात शिशुका नाम राशि एवं लग्नके अनुसार 'वीर' घोषित किया.
२१२-२१३ इन्द्र द्वारा जिनेन्द्र-स्तुति.
२१४-२१५ १६. अभिषेकके बाद इन्द्रने उस पुत्रका 'वीर' नामकरण कर उसे अपने माता-पिताको सौंप दिया. पिता सिद्धार्थने दसवें दिन उसका नाम वर्धमान रखा।
२१४-२१५ १७. वर्धमान शीघ्र ही 'सन्मति' एवं 'महावीर' हो गये.
२१६-२१७ तीस वर्षके भरे यौवनमें महावीरको वैराग्य हो गया. लौकान्तिक देवोंने उन्हें प्रतिबोधित किया.
२१६-२१७ १९. लौकान्तिक देवों द्वारा प्रतिबोध पाते ही महावीरने गृहत्याग कर दिया.
२१८-२१९ महावीरने नागखण्डमें षठोपवास-विधि पूर्वक दीक्षा ग्रहण की. वे अपनी प्रथम पारणाके निमित्त कूलपुर नरेश कूलके यहाँ पधारे.
२१८-२१९ राजा कुलके यहाँ पारणा लेकर वे अतिमुक्तक नामक श्मशान-भूमिमें पहुँचे, जहाँ भव नामक रुद्रने उनपर घोर उपसगं किया.
२२०-२२१ महावीरको ऋजुकूला नदीके तीरपर केवलज्ञानकी उत्पत्ति हुई. तत्पश्चात् ही इन्द्रके आदेशसे यक्ष द्वारा समवशरणकी रचना की गयी.
२२०-२२१ २३. समवशरणकी अद्भुत रचना.
२२२-२२३
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