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________________ ८२ वडमाणचरिउ कडवक सं. पृष्ठः मूल/हिन्दी अनु. सन्धि ९ १. विदेह-देश एवं कुण्डपुर-नगरका वर्णन. १९८-१९९ २. कुण्डपुर-वैभव वर्णन. २००-२०१ कुण्डपुरके राजा सिद्धार्थके शौर्य-पराक्रम एवं वैभवका वर्णन. २००-२०१ राजा सिद्धार्थकी पट्टरानी प्रियकारिणीका सौन्दर्य-वर्णन. २०२-२०३ ५. इन्द्रकी आज्ञासे आठ दिक्कुमारियाँ रानी प्रियकारिणीकी सेवाके निमित्त आ पहुँचती हैं. २०२-२०३ रानी प्रियकारिणी द्वारा रात्रिके अन्तिम प्रहर में सोलह स्वप्नोंका दर्शन. २०४-२०५ श्रावण शुक्ल षष्ठीको प्रियकारिणीका गर्भ-कल्याणक. २०४-२०५ प्रियकारिणीके गर्भ धारण करते ही धनपति-कुबेर नौ मास तक कुण्डपुरमें रत्नवृष्टि करता रहा. २०६-२०७ माता प्रियकारिणीको गर्भकालमें शारीरिक स्थितिका वर्णन. चैत्र शुक्ल त्रयोदशीको बालकका जन्म. २०८-२०९ सहस्रलोचन-इन्द्र ऐरावत हाथीपर सवार होकर सदल-बल कुण्डपुरकी ओर चला. २०८-२०९ कल्पवासी-देव विविध क्रीड़ा-विलास करते हुए गगन-मार्गसे कुण्डपुरको ओर गमन करते हैं. २१०-२११ १२. इन्द्राणीने माता प्रियकारिणीके पास (प्रच्छन्न रूपसे ) एक मायामयी बालक रखकर . नवजात शिशुको (चुपचाप) उठाया और अभिषेक हेतु इन्द्रको अर्पित कर दिया. २१०-२११ इन्द्र नवजात शिशुको ऐरावत हाथी पर विराजमान कर अभिषेक हेतु सदल-बल सुमेरु पर्वतपर ले जाता है. २१२-२१३ १००८ स्वर्ण-कलशोंसे अभिषेक कर इन्द्रने उस नवजात शिशुका नाम राशि एवं लग्नके अनुसार 'वीर' घोषित किया. २१२-२१३ इन्द्र द्वारा जिनेन्द्र-स्तुति. २१४-२१५ १६. अभिषेकके बाद इन्द्रने उस पुत्रका 'वीर' नामकरण कर उसे अपने माता-पिताको सौंप दिया. पिता सिद्धार्थने दसवें दिन उसका नाम वर्धमान रखा। २१४-२१५ १७. वर्धमान शीघ्र ही 'सन्मति' एवं 'महावीर' हो गये. २१६-२१७ तीस वर्षके भरे यौवनमें महावीरको वैराग्य हो गया. लौकान्तिक देवोंने उन्हें प्रतिबोधित किया. २१६-२१७ १९. लौकान्तिक देवों द्वारा प्रतिबोध पाते ही महावीरने गृहत्याग कर दिया. २१८-२१९ महावीरने नागखण्डमें षठोपवास-विधि पूर्वक दीक्षा ग्रहण की. वे अपनी प्रथम पारणाके निमित्त कूलपुर नरेश कूलके यहाँ पधारे. २१८-२१९ राजा कुलके यहाँ पारणा लेकर वे अतिमुक्तक नामक श्मशान-भूमिमें पहुँचे, जहाँ भव नामक रुद्रने उनपर घोर उपसगं किया. २२०-२२१ महावीरको ऋजुकूला नदीके तीरपर केवलज्ञानकी उत्पत्ति हुई. तत्पश्चात् ही इन्द्रके आदेशसे यक्ष द्वारा समवशरणकी रचना की गयी. २२०-२२१ २३. समवशरणकी अद्भुत रचना. २२२-२२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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