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विशेषोक्ति
कारणके उपस्थित होनेपर भी कार्यका न होना विशेषोक्ति अलंकार है । कविने युवराज नन्दनके वर्णन - प्रसंग में कहा है
व माणचरिउ
विहु णव जोव्वण- लच्छिवंतु
सो सुंदरु तवि मए विवंतु ॥ ( १1११1१ )
इस प्रकार कविने प्रायः समस्त प्रधान अलंकारोंका आयोजन कर प्रस्तुत ग्रन्थको सरस, सुन्दर एवं चमत्कार - पूर्ण बनाया है ।
७. रस-परिपाक
मात्र शब्दाडम्बर ही कविता नहीं है । उसमें हृदय-स्पर्शी चमत्कारका होना नितान्त आवश्यक है और वह चमत्कार ही रस है । यही कारण कि शब्द और अर्थ काव्यके शरीर माने गये हैं और रस प्राण । प्राणपर ही शरीरकी सत्ता एवं कार्यशीलता निर्भर है । अतएव रसाभावमें कोई भी काव्य निर्जीव और निष्प्राण ही समझना चाहिए ।
afa श्रीधरने प्रस्तुत रचनामें आलम्बन एवं आश्रयमें होनेवाले व्यापारोंका सुन्दर अंकन किया है, जिससे रसोद्रेकमें किसी प्रकारकी न्यूनता नहीं आने पायी है। वीणाके संघर्षणसे जिस प्रकार तारोंमें झंकृति उत्पन्न होती है, उसी प्रकार हृदयग्राही राग-भावनाएँ भी काव्यके आवेष्टनमें आवेष्टित होकर रसका संचार करती हैं । यों तो इस काव्यका अंगी रस शान्त है, पर शृंगार, वीर और रौद्र रसोंका भी सम्यक् परिपाक हुआ है।
शृंगार रस
साहित्य में शृंगार रस अपना विशेष स्थान रखता है । अभिनवगुप्तके अनुसार शृंगार-भावना प्रत्येक काल एवं प्रत्येक जातिमें नित्यरूपसे विद्यमान रहती है । यतः उसका मूलभाव रति' अथवा 'काम' समस्त विश्व में व्याप्त है । इसलिए इस भावनाका व्यापक रूपसे चित्रण होना स्वाभाविक ही है । 'वड्ढमाणचरिउ' में भी शृंगारका अच्छा वर्णन हुआ है । कविने नन्दिवर्धन एवं उसकी रानी वीरवती, नन्दन एवं प्रियंकरा, त्रिपृष्ठ एवं स्वयंप्रभा, अमिततेज एवं द्युतिप्रभा तथा सिद्धार्थ एवं प्रियकारिणीके माध्यम से संयोग- शृंगारकी उद्भावना की है ।
द्युतिप्रभा जब अमिततेजका प्रथम बार दर्शन करती है, तभी वह उसपर मुग्ध हो जाती है । कवि उसका वर्णन करते हुए कहता है
बहु सोक्खयारि पणयट्ठिन चक्कवइ दुहिय पविउलरमणा णं णिय मायाए सिय-तियहँ
सुसंयंवरेण विहुणिय-हिय । हुअ अमियतेय विणिवद्ध-मणा । म मुइँ पुरा परइ गयहँ ।
( ६ ८|७-९ )
उक्त पद्यांशका अन्तिम चरण बड़ा ही मार्मिक है । उसपर महाकवि कालिदासकी 'भावस्थिराणि जननान्तरसौहृदानि' ( अभिज्ञानशाकुन्तल, ५/२ ) तथा 'मनो हि जन्मान्तरसंगतिज्ञम्' ( रघुवंश, ७।१५ ) तथा महाकवि असगकी 'मनो विजानाति हि पूर्णवल्लभम्' ( वर्धमानचरित्र, १०1७७ ) का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है ।
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उक्त में नायिका द्युतिप्रभा आश्रय है और नायक राजकुमार अमिततेज आलम्बन । अमिततेजका लावण्य उद्दीपन विभाव है । द्युतिप्रभाकी हर्ष -सूचक चेष्टाएँ अनुभाव हैं और चपलता आवेग आदि संचारीभाव हैं । स्थायी भाव रति है ।
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