________________
६६
वड्डमाणचरिउ (७.१३॥३), नागवन (९।२०११), इक्षुवन (१।३।१४), नन्दनवन (१३१७), कमलवन (५।१७।२५) एवं तपोवन (१।१६।२) के उल्लेखोंमें इक्षुवन एवं तपोवनको छोड़कर बाकीके वनोंको पौराणिक मानना चाहिए । कविने राजभवनोंके सौन्दर्य-वर्णनमें प्रमदवनके उल्लेख किये हैं । ये प्रमदवन नृपतियों, सामन्तों तथा श्रीमन्तोंके हॉकी वे क्रीड़ा-वाटिकाएँ थीं, जिनमें वे अपनी प्रेमिकाओं और पत्नियोंके साथ विचरण किया करते थे।
प्राचीन-साहित्यमें प्रमदवन और नन्दनवनके उल्लेख अनेक स्थलोंपर उपलब्ध होते हैं। महाभारतके वन-पर्व (५३।२५) के अनुसार राजमहलोंमें रानियोंके लिए बने हए उपवनोंको प्रमदवन अथवा प्रमदावन कहा गया है। सुप्रसिद्ध नाटककार भासने अपने नाटक 'स्वप्नवासवदत्तम्' में बताया है कि जब राजा उदयनका पुनर्विवाह पद्मावतीके साथ सम्पन्न होने लगा, तब वासवदत्ता अपने मनोविनोदके लिए प्रमदवनमें चली गयी। स्पष्ट है कि यह प्रमदवन राजप्रासादोंके भीतरको वह पुष्पवाटिका थी, जिसमें प्रेमी-प्रेमिकाओंकी केलि-क्रीडाएँ हआ करती थीं।
विबुध श्रीधर कवि होनेके साथ सौन्दर्य-प्रेमी भी थे। उन्होंने नगर, प्रासाद तथा उपवनोंके वर्णनोंमें जिन वृक्षों, लताओं व पुष्पोंके उल्लेख किये हैं, वे निम्न प्रकार हैंवृक्ष
'वड्डमाणचरिउ'में कविने तीन प्रकारके वृक्षोंके उल्लेख किये हैं-(१) फलवृक्ष, (२) शोभावृक्ष और (३) पुष्पवृक्ष । फलवृक्ष
पिण्डी (२।३।१२), कपित्थ (१०।३०।३), पूगद्रुम (३।३।१०), आम्रवृक्ष (४।६।३), कल्पवृक्ष (४।५।१०), वटवृक्ष (९।१७।४), कोरक (२।३।११) एवं शालि (३।३।९) नामक वृक्षोंके नाम मिलते हैं। शोभावृक्ष
अशोक-वृक्ष (१०।१।११, १०।१६।१२), शाल-वृक्ष (९।२१।११) एवं तमाल-वृक्ष (१०।२३।८)। पुष्पवृक्ष
शैलीन्ध्र (७:३।३), जपाकुसुम (७।१४), शतदल (८।३), कंज (२।३।११), तिलपुष्प (१०।११।८) एवं मन्दार-पुष्प (२।२१११) के उल्लेख मिलते हैं।
. इनके अतिरिक्त कविने लताओं एवं अन्य वनस्पतियोंके भी उल्लेख यत्र-तत्र किये हैं। इनमें से नागरबेल (३।३।१०), महालता (२।३।३), गुल्मलता (८।६।१), लतावल्लरि (२।३।१४) एवं कुश (२।१९।६) आदिके उल्लेख मिलते हैं।
इन उल्लेखोंको देखकर ऐसा विदित होता है कि कवि वनस्पति-जगत्से पर्याप्त रूपमें परिचित था। पशु-पक्षी एवं जीव-जन्तु
कविने दो प्रकारके जानवरोंके उल्लेख किये हैं-मेरुदण्डवाले ( Mammalia ) एवं उसके विपरीत ( Reptilia) । मेरुदण्डवाले जीवोंमें स्तनपायी एवं सरीसृप ( रेंगकर चलनेवाले ) जीव आते हैं। स्तनपायी जीवोंमें मनुष्यों के अतिरिक्त सिंह, व्याघ्र, गाय, लंगूर, सांड़ एवं भैसे आदि हैं।
इनमें से कविने हाथी, घोड़ा, ऊँट ( ४।२४।१०), गाय (१११३३२), भैसे (५।१३।७), मेष ( ९।१११११), हरि ( ३।२५।९), ऋक्ष (१०।२४।११), हरिण (१०।१९।६ ), श्वान ( ९।११।१०), नवकन्धरु ( = साँड़ ४।१०।११), चीता ( ४।५।८), जम्बु एवं शृंगाल ( ५।५।२), सरह (१०८१) के उल्लेख किये हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org