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प्रस्तावना
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कविने हाथी एवं घोड़ोंके भेद - प्रकार भी गिनाये हैं, जो कई प्रकारसे महत्त्वपूर्ण हैं। हाथियोंमें कविने मातंग (५।१०।१२, मदोन्मत्त एवं सबल हाथी ), करोश ( ४।२२। १ ), द्विरद ( ४।२३१५, ५१२११, छह वर्ष से अधिक आयुवाला हाथी ), लाल हाथी ( ५८३ श्वेतांग मातंग ( ५७ १०, ५।९१४ ), मदगल (५।२३।९, ५1१८1७ ), वन्य- गज ( ५|२३|६ ), करीन्द्र ( ५।१७ १५ श्रेष्ठ गजोंका अधिपति ), ऐरावतहाथी ( ५1१८1८ ), सुरकरि ( ५/१९/५ ), दिग्गज ( ४|१|५ ), करि ( २।५।१८, ५ | १३ | १ ), गज ( १/१५/५, ५1१०1१०, साधारण हाथी ), गजेन्द्र ( १०|१३|१, उत्तम तथा उत्तुंग गज ), दन्ती
( ५११४ १४, आठ सालसे अधिक आयुवाला हाथी ) के उल्लेख किये हैं ।
घोड़ोंके प्रकारोंमें कविने तुरंग ( वेगगामी तुर्की घोड़े ४२४१८, ८०४४), वाजि ( युवावस्थाको प्राप्त उत्तम श्रेणीके घोड़े ३।११।११ ) एवं हय ( ४।२४|११ ) नामक घोड़ोंके उल्लेख किये हैं । जिस रथमें घोड़े जोते जाते थे, कविने उन रथोंको तुरंगमस्थ ( ५/७ ) कहा है । घोड़ोंकी सज्जाके उपकरणोंमें-से कविने परियाण (४२४/७ ), खलोन ( ४।२४/७ ) एवं पक्खर ( घोड़ोंके कवच ५।७।१२ ) के उल्लेख किये हैं । मार्ग में चलते-चलते जब ये घोड़े थक जाते थे, तब अश्वारोही अथवा अश्वसेवक उन्हें जमीनमें लिवाता था ( ४२४१८ ), इससे उनकी थकावट दूर हो जाती थी ।
नाग ( ११८०४ ), महोरग
( १०1८1१ ), कुक्षि
पक्षियों में कुक्कुट ( ५।१३।७ ), परपुट्ट ( कोयल, ४|१३|११ ), कायारि ( उल्लू, ४११०१४ ), हंस (१८१९ ), हंसिनी ( ११८/९ ), कीर ( १।८।१० ) एवं मयूर ( १।४।१२ ) उल्लेखनीय हैं । अन्य जीव-जन्तुओंमें पन्नग ( १।५।१ ), कृष्णोरग ( १|४|१२ ), ( १०|२१|१० ), सरीसृप ( १०।२१।९ ), विसारी ( मछली, ९।७।५ ), अक्ष ( १०1८1१ ), कृमि ( १०१८/१ ), शुक्ति ( १०१८1१ ), शंख ( १०१८/१ ), गोभिन ( १०1८1१ ), पिपीलिका (१०1८/२), दंशमशक ( १०1८1३ ), मक्खी ( १०1८1३ ), मकर ( १०/८/१२ ), ओघर ( १०/८/१२ ), सुंसुमार ( १०।८।१२ ), झष ( १०।८।१२ ), शिलीमुख ( १०1१।१० ) एवं कच्छप प्रमुख हैं ।
( २ ) मानवीय भूगोल
मानवीय भूगोलमें मानव-जाति के निवासस्थल तथा उसकी आजीविकाके साधन आदिकी चर्चा रहती है | मानव के जीवित रहने के लिए आवश्यक सामग्री, यथा - योग्य जलवायु, जलीय प्रदेश, उपजाऊ भूमि, चरागाह एवं घरेलू उद्योग-धन्धोंके योग्य कच्चे माल आदिकी अधिकता जहाँ होती हैं, उन स्थानोंको मानव अपना निवास-स्थल चुनता है । यही कारण है कि प्रस्तुत ग्रन्थ में वर्णित देश अथवा नगर प्रायः ही नदियोंके किनारेपर स्थित बताये गये हैं । उनकी उपजाऊ भूमि, विविध फसलों तथा वन सम्पदा एवं उद्योग-धन्धों आदिका वर्णन किया गया है । कर्मभूमियों के माध्यम से कविने मानव समाजके दो भाग किये हैं-आर्य और म्लेच्छ । म्लेच्छोंके विषयमें उसने लिखा है कि वे निर्वस्त्र तथा दीन रहते हैं । वे कर्कश, बर्बर एवं गूँगे होते हैं । नाहल ( वनचर ), शबर तथा पुलिन्द जातिके म्लेच्छ, हरिणोंके सींगों द्वारा खोदे गये कन्दोंको खाते हैं ( १०।१९।५-६ ) । इस माध्यमसे कविने पूर्व मध्यकालीन आदिम जातियों की स्थितिपर अच्छा प्रकाश डाला है । आर्योंके विषय में कविने लिखा है कि वे ऋद्धिवन्त और ऋद्धिहीन इस तरह दो प्रकारके होते हैं । कविने ऋद्धिवन्त-परम्परामें तीर्थंकर, हलायुध, केशव, प्रतिकेशव एवं चक्रायुधको रखा है तथा ऋद्धिहीन आर्योंमें उन मनुष्योंको रखा है, जिन्होंने पशुओंके वध-बन्धनको छोड़ दिया है तथा जो कृषि कार्य करते हैं ।
( १०।१९।७-९ ) ।
कवि इन मनुष्यों की आयुकी चर्चा की है ( १०।२०।१-७ ) ।
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