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प्रस्तावना
(१) इल गोत्र एवं मुनिराज श्रुतसागर । ( २ ) त्रिपृष्ठ एवं हयग्रीवके युद्ध-प्रसंगोंमें मृतक योद्धाओंकी बन्दीजनों ( चारण-भाटों) द्वारा सूचियों
का निर्माण । ( ३ ) दिल्ली के प्राचीन नाम-"ढिल्ली" का उल्लेख । ( ४ ) तोमरवंशी राजा अनंगपाल एवं हम्मीर वीरका उल्लेख ।
(१) कवि श्रीधरने राजा नन्दनके मुखसे मुनिराज श्रुतसागरको सम्बोधित कराते हुए उन्हें इलपरमेश्वर कहलवाया है। यह इल अथवा इल-गोत्र क्या था, और इस परम्परामें कौन-कौन-से महापुरुष हए है, कविने इसकी कोई सूचना नहीं दी । किन्तु हमारा अनुमान है कि कविका संकेत उस वंश-परम्पराकी ओर है, जिसमें कलिंग-सम्राट् खारबेल (ई.पू. प्रथम सदी) हुआ था। खारबेलने हाथीगुम्फा-शिलालेखमें अपनेको ऐर अथवा ऐल वंशका कहा है। यह वंश शौर्य-वीर्य एवं पराक्रममें अद्वितीय माना जाता रहा है । राजस्थानको परमार-वंशावलियोंमें भी कलिंग-वंशका उल्लेख मिलता है। प्रतीत होता है कि परिस्थितिविशेषके कारण आगे-पीछे कभी खारबेलका वंश पर्याप्त विस्तृत होता रहा तथा उसका ऐर अथवा ऐल गोत्र भी देश, काल एवं परिस्थितिवश परिवर्तित होता गया। गोइल्ल, चांदिल्ल, गोहिल्य, गोविल, गोयल, गुहिलोत, भारिल्ल, कासिल, वासल, मित्तल, जिन्दल, तायल, बन्देल, बाघेल, रुहेल, खेर आदि गोत्रों अथवा जातियों में प्रयुक्त इल्ल, इल, यल, अल, एल तथा एर या ऐर उक्त इल अथवा एलके ही विविध रूपान्तर प्रतीत होते हैं । सम्भवतः यह गोत्र प्रारम्भमें व्यक्तिके नामके साथ संयुक्त करने की परम्परा रही होगी, जैसा कि खारबेल-[खार + व + एल ] इस नामसे भी विदित होता है। जो कुछ भी हो, यह निश्चित है कि इल अथवा एल वंश पर्याप्त प्रतिष्ठित एवं प्रभावशाली रहा है। ११वी १२वीं सदीमें भी वह पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त रहा होगा, इसीलिए कविने सम्भवतः उसी वंशके मुनिराज श्रुतसागरके 'इल' गोत्रका विशेष रूपसे उल्लेख किया है।
• (२) विबुध श्रीधर उस प्रदेशका निवासी था, जो सदैव ही वीरोंकी भूमि बनी रही और उसके आसपास निरन्तर युद्ध चलते रहे । कोई असम्भव नहीं, यदि उसने अपनी आँखोंसे कुछ युद्धोंको देखा भी हो, क्योंकि 'वड्डमाणचरिउ' में त्रिपृष्ठ एवं हयग्रीवके बीच हुए युद्ध', उनमें प्रयुक्त विविध प्रकारके शस्त्रास्त्र', मन्त्रि-मण्डलके बीच में साम, दाम, दण्ड और भेद-नीतियोंके समर्थन एवं विरोधमें प्रस्तुत किये गये विभिन्न प्रकारके तर्क, 'रणनीति, संव्यूह-रचना'' आदिसे यह स्पष्ट विदित होता है। 'वड्ढमाणचरिउ' में कवि ने लिखा है कि-"चिरकाल तक रणकी धुरीको धारण करनेवाले मृतक हुए तेजस्वी नरनाथोंकी सूची तैयार करने हेतु बन्दीजनों ( चारण-भाटों) ने उनका संक्षेपमें कुल एवं नाम पूछना प्रारम्भ कर दिया।"
१. वड्ढमाण. १शक्षा१०। २. नमो अराहतानं नमो सवसिधान ऐरेन (संस्कृत-ऐलेन) महाराजेन माहामेघवाहनेन......
[ दे. नागरी प्र.प. ८।३।१२] । ३. मुहणोतणसीको ख्यात भाग-१. पृ. २३२ । ४. वड्ढमाण.-१०-२३ । १. दे. इसी प्रस्तावनाका शस्त्रास्त्र-प्रकरण । ६. वड्ढमाण.-४१३-१४, ४।१।१-७॥ ७-८, वही-४१५८-१२, ४१६-१७ । ६. वड्ढमाण.-४॥२-४. राजा प्रजापतिने विद्याधरों में फूट डालनेके लिए हो विद्याधर राजा ज्वलनजटीकी पुत्री स्वयं प्रभाको अपनी
पुत्रवधू बनाया। १०. पाँचवीं सन्धि द्रष्टव्य । ११. वड्ढमाण.-११०, १६ ।
१२. वड्ढमाण.-१११।१३-१४ ।
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