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बढमाणचरिउ
१५. रोग और उपचार कविने रोगोंमें जरा-वेदना, कुक्षि-वेदना, नेत्र-वेदना, शिरोवेदना, अनिवारित ऊर्ध्व-वेदना अर्थात् परणसूचक उल्टी श्वांस, निद्रा रोग, चर्म रोग, महामारी, लोम-रोगे, नख-रोग', मल-रोग', रक्त रोग, पित्त-रोग, मूत्र-रोग, मज्जा-रोग', मांस-रोग, शुक्र-रोग, कफ-रोगे , अस्थि-रोग', ताप-ज्वरे आदिके नामोल्लेख किये हैं, कविने इन रोगोंके उल्लेख विभिन्न प्रसंगोंमें किये हैं, किन्तु उनके उपचारों की चर्चा नहीं की है। कविने एक प्रसंगमें यह अवश्य बतलाया है कि निद्राको अधिकता रोकने के लिए परिमित भोजन करना चाहिए।
१६. कृषि (Agriculture ), भवन-निर्माण (Building-construction), प्राणि
विद्या (Zoology) तथा भूगर्भ विद्या (Geology) सम्बन्धी यन्त्र एवं विज्ञान
विबुध श्रीधरने समकालीन कुछ यन्त्रों ( Machines ) की भी चर्चाएं की हैं। वर्तमानकालीन विकसित वैज्ञानिक-युगकी दृष्टिसे उनका महत्त्व भले ही न हो, किन्तु मध्यकालकी दृष्टिसे उनका विशेष महत्त्व है। वर्तमानमें तत्सम्बन्धी जो यन्त्र प्राप्त होते हैं, वस्तुतः वे उन्हींके परवर्ती विकसित रूप कहे जा सकते हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि १२-१३वीं सदीमें उत्तर-भारत कृषि एवं वन-सम्पदासे अत्यन्त समृद्ध था। वहाँ विविध प्रकारके अनाजोंके साथ-साथ गन्नेकी उपज बहुतायतसे होती थी। गन्नेसे गुड़ भी प्रचुरमात्रामें तैयार किया जाता था। गन्नेका रस निकालनेके लिए किसी एक यन्त्रका प्रयोग किया जाता था। प्रतीत होता है कि वह यन्त्र चलते समय पर्याप्त ध्वनि करता था। अतः कविने कहा है कि-"गन्नेके खेतोंमें चलते हए यन्त्रोंकी ध्वनियाँ लोगोंको बहरा कर देती थीं।" इसी प्रकार जीवोंके वध करने अथवा शारीरिक दण्ड देने हेतु पीलन-यन्त्र तथा सुन्दर-सुन्दर भवनों, प्रासादों एवं सभा-मण्डपोंके निर्माणमें काम आनेवाले यन्त्रोंकी चर्चा कविने की है। इसी प्रकार एक स्थानपर प्राणि-शरीरको दृढ़-यन्त्रके समान कहा गया है। तात्पर्य यह कि कविकी मान्यतानुसार बाह्य-यन्त्रोंके निर्माणका आधार बहुत कुछ अंशोंमें शारीरिक यन्त्रप्रणालीकी नकल थी। इन वर्णनोंसे प्रतीत होता है कि उत्तर-भारत विशेष रूपसे हरयाणा, पंजाब, हिमाचलप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली तथा उसके आस-पासके प्रदेशोंमें कृषि ( Agriculture ), भवन-निर्माण ( Building-construction ) तथा प्राणि-शरीर-विज्ञान ( Sciences relating to Anatomy, Phisiology and Surgery ) सम्बन्धी विज्ञान, वैज्ञानिक-क्रियाएँ तथा तत्सम्बन्धी उपकरण पर्याप्त मात्रामें लोक-प्रचलनमें आ चुके थे।
१. वड् ढमाण.-१०।२।२५ । २. वही, १०।२५।२५ । ३. वही, १०॥२५॥२५॥ ४. वही, १०।२५।२५, १०।३२।४ । ५. वही, १०२५॥२५॥ ६. वही, ८१४॥४॥ ७. वही, १०३२।४। ८. वही, ३।१।१३ ।
६. वही, १०।३२।४। १०. वही,१०३२।४ । ११. वही, १०।३२१४ । १२. बही, १०३२।४ । १३. वही, १०।३२।४।
१४. वही, १०॥३२॥४॥ १५. वही, १०॥३२॥४। १६. वही,१०।३।४। १७. वही, १०।३२।५। १८. वही,१०३२।५ । १६. वही, १०॥३४॥५॥ २०. वही,१०॥३२।६ । २१. वही, ८।१४।४। २२. वही,४।२४।४। २३. वही, ३।१५। २४. वही, ६।१२।५। २५. वही, २३।४। २६. वही, ६।१५।१-२ ।
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