________________
प्रस्तावना
६१
त्रिपृष्ठ एवं विजय के पीछे-पीछे एक करहा ( ऊँट ) -दल चल रहा था और उसके पीछे-पीछे कहारों द्वारा ढोयी जाती हुई शिविकाओंमें बैठी हुई नरनाथोंकी विलासिनियाँ तथा सैन्य समुदायके खाने-पीने की सामग्री-- चरुआ, कलश, कड़ाही आदि लेकर चलनेवाला दल ( ४।२१ ) ।
रथावर्त शैलपर पहुँचते ही मण्डप खड़े कर दिये गये । वणिक्जनोंने विविध आवश्यक वस्तुओंका बाजार फैला दिया । सेवकोंने हाथियोंका सामान उतार डाला । फिर उन्हें जलमें डुबकियाँ लगवाकर तथा घोड़ों को धूलि लिटाकर और शीतल जल पिलवाकर बाँध दिया । ऊँटोंको जल पिलाकर स्नान कराया गया । काण्ड-पट ( Partition ) लगाकर महिलाओं के निवासोंकी व्यवस्था कर दी गयी । बैलोंको जंगल में चरने छोड़ दिया गया और कोई घास और जल, तो कोई काष्ठ तथा तेल लाने चल दिया ( ४१२४ ) ।
उधर हयग्रीवको जब पता चला कि त्रिपृष्ठ पूरी तैयारी के साथ उससे लोहा लेने आ रहा है, तो वह तत्काल ही सन्धि प्रस्ताव लेकर अपना दूत उसके पास भेजता है । वह त्रिपृष्ठको हयग्रीव के पराक्रमोंका परिचय देकर तथा स्वयंप्रभाको लौटाकर हयग्रीवसे सन्धि कर लेनेकी सलाह देता है ( ५1१-२, ५ ) | किन्तु विजय उस दूतको डाँट फटकार कर वापस भगा देता 1
विश्रामके बाद त्रिपृष्ठ सदल-बल युद्धस्थलीकी ओर चला । नागरिकोंकी ओरसे उसका बड़ा स्वागत किया गया । उसे स्थान-स्थानपर गदा, मुसल, धनुष एवं कौस्तुभ मणि ( रात्रिमें प्रकाश करने हेतु ) आदि हथियार भेंट स्वरूप दिये गये ।
युद्ध-क्षेत्र में दोनों सेनाओंमें भयानक युद्ध हुआ । भटसे भट भिड़ गये, घोड़ोंसे घोड़े जा टकराये, हाथी हाथियोंसे जुट गये, रथसे रथ लग गये एवं धनुषकी टंकारोंसे गुह- कन्दराएँ भर उठीं ( ५1१० ) 1 किन्तु त्रिपृष्ठकी सेना पर-पक्ष के दुर्गति प्राप्त सैनिकोंपर केवल दया ही नहीं करती थी, अपितु उन्हें मित्रवत् समझकर छोड़ भी देती थी ।
अश्वग्रीव ( हयग्रीव ) का मन्त्री हरिविश्व शर-सन्धान में इस तरह चमत्कार दिखाता रहा कि उसके शत्रुजन भी दाँतों तले अंगुली दबा लेते थे । उसके बाणोंने त्रिपृष्ठ - जैसे योद्धाको भी घेर लिया ( ५११६ ) । किन्तु शीघ्र ही भीम अपने अर्ध मृगांक बाणसे मान भंग कर देता है ( ४।१७ ) । अकंकीर्तिने अपने शैलवर्त नामक एक अस्त्रसे प्रतिपक्षी खेचरोंके मस्तकोंको कुचल डाला (५११८ ) । अन्त में त्रिपृष्टने अपने चक्रसे रथांग विद्या में पारंगत (४।९।१२) हयग्रीवका सिर फोड़ दिया और इसी समय युद्ध समाप्त हो गया ( ५।२३ ) |
कविने अन्य युद्धसम्बन्धी विवरणोंमें विविध प्रकारके कवचों एवं शिरस्त्राण ( ५११६।८ ), शुभ शकुन ( ५|२०१० ) आदिका भी अच्छा वर्णन किया है । कवच ( ५/७ ) तीन प्रकारके बतलाये हैं । गुडसारी कवच ( हाथियोंके लिए ), पक्ख कवच ( घोड़ोंके लिए, ) एवं सन्नाह कवच ( मनुष्योंके लिए ) । धनुष-बाण साधने की विधिका वर्णन करते हुए कविने विविध प्रसंगों में बताया है कि
१. धनुष बायें हाथ में लिया जाता है ।
२. डोरीको कान तक खींचा जाता है ।
३. बाणको नासाग्र के पाससे निशाना बनाकर छोड़ा जाता है ।
४. मध्य अँगुलीसे धनुष - डोरीको खींचकर छोड़ा जाता है ।
कविने त्रिपृष्ठ एवं हयग्रीवके युद्धका वर्णन वर्गीकृत पद्धति से किया
तथा बाद में अश्वयुद्धका वर्णन किया है ।
इस वर्णन में कवि ने यद्यपि अपनी वर्णन - कुशलताका दिग्दर्शन किया है, किन्तु अपने पूर्ववर्ती महाकवि 'असग' से प्रेरणा लेकर भी वह उसकी समानता नहीं कर सका है । [ तुलनाके लिए देखिए - असग कृत वर्धमानचरित्रका ९।२६ - २७ एवं 'वड्डमाणकाव्य' का ५।११।१३-१४ ]
Jain Education International
। उसने सबसे पहले हस्तियुद्ध
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org