Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . - कितने ही लोग भगवान् से ऐसी प्रार्थना करते थे कि भगवन् ! हम पर प्रसन्न होइए / हमें अनुगृहीत कीजिए। भगवान् ऋषभ अन्त में अपुनरावृत्ति स्थान को प्राप्त हुए, जहाँ जाने के पश्चात् कोई लौट कर नहीं आता। यह बहुत सम्भव है कि व्रात्य-काण्ड में भगवान् ऋषभ का जीवन रूपक की भाषा में चित्रित है। ऋषभ के प्रति कुछ वैदिक ऋषि श्रद्धावान् थे और वे उन्हें देवाधिदेव के रूप में मान्य करते थे। अर्हन् ___ ऋग्वेद में भगवान् ऋषभ के अनेक उल्लेख हैं। किन्तु उनका अर्थ-परिवर्तन कर देने के कारण वे विवादास्पद हो जाते हैं। अर्हन् शब्द श्रमण संस्कृति का बहुत प्रिय शब्द है। श्रमण लोग अपने तीर्थङ्करों या वीतराग आत्माओं को अर्हन् कहते हैं / जैन और बौद्ध साहित्य में अर्हन् शब्द का प्रयोग हजारों बार हुआ है। जैन लोग आर्हत् नाम से भी प्रसिद्ध रहे हैं। ऋग्वेद में अर्हन् शब्द का प्रयोग श्रमण नेता के लिए ही हुआ है अर्हन् बिभर्षि सायकानि धन्वाहन्निष्कं यजतं विश्वरूपम् / अर्हन्निदं दयसे विश्वमम्वं न वा ओजीयो रुद्र त्वदस्ति // आचार्य विनोबा भावे ने इसी मंत्र के एक वाक्य 'अर्हन्निदं दयसे विश्वमन्वं' को उद्धृत करते हुए लिखा है- "हे अर्हन् ! तुम जिस तुच्छ .दुनियाँ पर दया करते हो १-महापुराण, 20122 / २-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वृत्ति, पत्र 158 : समुजाए-तत्र सम्यग्-असुनरावृत्या ऊर्ध्व लोकाग्रलक्षणं यातः प्रातः / ३-ऋग्वेद, 1 / 24 / 190 // 1 // 2 / 4 / 33 / 15 / 5 / 2 / 28 / 4 / 6 / 11 / 8 / 6 / 2 / 16 / 11 / 10 / 12 / 166 / 1 / आदि-आदि ४-वही, 2 / 4 / 33 / 10 /