Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 13
________________ है।” यद्यपि उन्होंने धर्म की जुगुप्सा की थी, तथापि वे तपस्या के प्रभाव से देवलोक में गये कारण “एक दिन का तप भी स्वर्ग प्राप्ति करा देता है ।" (गा. 6 से 10 ) देवलोक से च्युत होकर वे दोनों दशपुर नगर में शांडिल्य नामक ब्राह्मण की जयवती नाम की दासी से युगलपुत्र के रूप में उत्पन्न हुए। अनुक्रम से उन्होंने यौवन को प्राप्त किया। तब पिताजी की आज्ञा से वे क्षेत्र की रक्षा करने हेतु गए। “दासी पुत्रों का तो यही काम है ।" रात्रि में वे दोनों खेत में ही सो गए। इतने में एक बड़ के वृक्ष की कोटर में से निकल कर मानो वह यमराज का बंधु हो वैसे एक कृष्णसर्प ने उन दोनों में से एक को डंसा । पश्चात् सर्प दूसरे भाई को शोधने लगा। तब मानो पूर्व का बैरी हो वैसे उस दुष्ट सर्प ने उसको भी डंस लिया। उस डंक का प्रतिकार न होने से वे दोनों मृत्यु को प्राप्त हुए । मनुष्यरूप में जैसे आये थे, वैसे ही चले गए। उनके निष्फल जन्म को धिक्कार है । वहाँ से मृत्यु को प्राप्त कर कालिंजरगिरि के शिखर पर एक मृगणी (हिरण) के उदर से वे दोनों मृगरूप में उत्पन्न हुए। वे दोनों प्रीति से साथ-साथ घूमते फिरते थे। इतने में एक शिकारी ने एक ही बाण के द्वारा समकाल में उन दोनों को मार डाला । वहाँ से मृत्यु प्राप्त करके गंगा नदी के किनारे एक राजहंसी के उदर से पूर्व की भांति युगलिया रूप में उत्पन्न हुए। एक बार वे दोनों साथ साथ में क्रीड़ा कर रहे थे, इतने में किसी मछुआरे ने जाल बिछाकर उनको पकड़ लिया और उनकी ग्रीवा पकड़कर उनको मार डाला । “धर्महीन की प्रायः ऐसी ही गति होती है।" वहाँ से मृत्यु प्राप्त कर काशीपुरी में भूतदत्त नाम के समृद्धिवान् चांडाल के घर चित्र और संभूत नामके दो पुत्र हुए। दोनों में परस्पर अत्यंत स्नेह होने से वे कभी भी एक दूसरे से जुदा नहीं होते थे । नख और मांस जैसा उनका दृढ़ संबंध था। (गा. 11 से 21 ) उस समय वाराणसी नगरी में शंख नामका राजा था, उसके नमुचि नाम का प्रधान था। एक समय उस नमुचि प्रधान से कोई बड़ा अपराध हो गया, इससे राजा ने उसे गुप्त रीति से मारने के लिए भूतदत्त चांडाल त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व ) [2]

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