Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 88
________________ उनको महाप्रयत्न से रोक कर इस हेतु से मैं यहाँ आया हूँ। अब यहाँ से वापिस शीघ्र अपने ठिकाने चले जाओ । यदि तुम शीघ्र ही यहाँ से चले जाते हो तो तुम्हारा यह अपराध हम सहन कर लेंगे।” दूत के इस प्रकार के वचन सुनकर ललाट पर भयंकर और उग्र भृकुटी चढ़ाकर यवनराज बोले 'अरे दूत! यह तू क्या बोलता है ? क्या तू मुझे नहीं पहचानता ? यह बालक पार्श्वकुमार यहाँ युद्ध करने आया है, तो क्या हुआ ? और यदि वृद्ध अश्वसेन राजा स्वयं भी आते तो इससे भी मेरे लिए क्या है ? इसलिए हे दूत ! जा, कहना पार्श्वकुमार को कि यदि अपनी कुशलता चाहता है तो चला जा । तू ऐसे निष्ठुर वचन बोलता है । उस उपरांत भी दूत होने के कारण तू अवध्य है, इसलिए तुझे जिंदा जाने देता हूँ। तू जाकर अपने स्वामी को सर्व हकीकत कह देना । दूत पुनः कहा कि, 'अरे दुराशय ! मेरे स्वामी पार्श्वकुमार ने तुझ पर दया लाकर ही तुझे समझाने के लिए मुझे यहाँ भेजा है। असमर्थता से नहीं । यदि तुम उनकी आज्ञा मान लोगे तो जैसे वे कुशस्थल के राजा का रक्षण करने के लिए यहाँ आए हैं, वैसे तुझे भी मारना नहीं चाहते। परंतु जिन प्रभु की आज्ञा का स्वर्ग में भी अखंड रूप से पालन किया जाता है, उसका खंडन करने हे मूढमति ! तू यदि खुश होता है तो तू वास्तव में अग्नि की कांति के स्पर्श से खुश होने वाला पतंग जैसा ही है। क्षूद्र ऐसा खद्योत कहां और सर्व विश्व प्रकाशित करने वाला सूर्य कहाँ ? उसी प्रकार एक क्षूद्र राजा जैसा तू कहाँ और तीन जगत् के पति पार्श्वकुमार कहाँ ? (गा. 121 से 137) उपर्युक्त दूत के वचन सुनकर यवन के सैनिक क्रोध से आयुध ऊंचे करके खड़े हो गये और उच्च स्वर में कहने लगे- अरे ! अधम दूत ! तुझे तेरे स्वामी के साथ क्या बैर है कि उनका द्रोह करने के लिए तू ऐसे बोल रहा है ? तू भली प्रकार से सर्व उपायों को जानता है । ऐसा कहकर वे रोषित होते हुए उस पर प्रहार करने की इच्छा करने लगे। उस समय एक वृद्ध मंत्री ने आक्षेपयुक्त कठोर शब्दों में कहा कि यह दूत अपने स्वामी का बैरी नहीं है। परंतु तुम तुम्हारे स्वामी के बैरी हो, जो स्वेच्छा से ऐसा वर्तन करके त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( नवम पर्व ) [77]

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