Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 97
________________ वे लज्जित हुए हों वैसे तत्काल ही वहाँ से कहीं चले गए। तत्पश्चात् हिक्कानाद से दिशाओं को पूर्ण करते और दयाहीन अनेक रीछ, यमराज की सेना तुल्य क्रूर अनेक चीते, कंटक के अग्रभाग से शिलाओं को भी भेदन करने वाले बिच्छू और दृष्टि से वृक्षों को भी जला दे, वैसे दृष्टिविष सर्यों की विकुर्वणा की। वे सर्व उपद्रव करने की इच्छा से प्रभु के पास आये। तथापि सरिताओं से समुद्र के सदृश प्रभु ध्यान से चलित नहीं हुए। तब उसने विद्युत् सहित मेघ की तरह हाथ में कर्तिका (शस्त्र) को रखने वाले, ऊँची दाढ़ी वाले किलकिल शब्द करते हुए वैतालों की विकुर्वणा की, जिन पर सर्प लटकते हो वैसे वृक्षों के जैसी लंबी जिह्वा और शिश्न (लिंग), दीर्घ जंघा तथा चरण से ताड़ वृक्ष पर आरुढ़ हुए हों वैसे लगते थे। मानो जठराग्नि हो वैसे मुख में से ज्वाला निकालते वे वैताल हाथी पर श्वान दौड़े वैसे प्रभु की ओर दौड़े परन्तु ध्यान रूपी अमृत के द्रह में लीन हुए प्रभु उन पर भी क्षुभित नहीं हुए। तब दिन में उलूक (उल्ल) पक्षी की भाँति वे भाग कर कहीं चले गए। प्रभु की ऐसी दृढ़ता देखकर मेघमाली असुर को उल्टा विशेष रूप से क्रोध चढ़ा। इससे उसने कालरात्रि के सहोदर जैसे भयंकर मेघ आकाश में विकुर्वे। उस समय आकाश में कालजिह्वा जैसी भयंकर विद्युत् चमकने लगी। ब्रह्माण्ड को भी फोड़ डाले वैसी मेघ गर्जना से समस्त दिशाएँ व्याप्त हो गई। नेत्र के व्यापार का हरण करे वैसा घोर अंधकार छा गया। इसके फलस्वरूप अंतरिक्ष और पृथ्वी मानो एकत्रित होकर पिरो दिये गये हों, वैसे हो गए। तब इस मेरे पूर्व वैरी का मैं संहार कर डालूँ ऐसी दुर्बुद्धि से मेघमाली कल्पांत काल के मेघ जैसे बरसने लगा। मुसल और बाण जैसी धाराओं से मानो पृथ्वी को कुल्हाड़े द्वारा खोदता हो, वैसा ताड़न करने लगा। उसके प्रहार से पक्षी उछल उछल कर गिरने लगे। ऐसे ही वराह और महिष आदि पशु भी इधर-उधर भागमभाग करने लगे। पानी के अति वेग से भयंकर जलप्रवाह में अनेक प्राणिगण बहने लगे। बड़े-बड़े वृक्षों को भी मूल में से उन्मूलन करने लगे। श्री पार्श्वनाथ प्रभु के क्षणभर में तो वह जल घुटने तक आ गया, क्षणभर में जानु तक और फिर क्षणमात्र में कटि तक और क्षणभर में कंठ तक आ पहुँचा। मेघामाली देव ने जब वह जल सर्वत्र प्रसारित किया, [86] त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)

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