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सिद्धि को प्राप्त करोगे।' प्रभु के इन वचनों को सुनकर बंधुदत्त और प्रियदर्शना ने साथ में तत्काल प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण की।
(गा. 294 से 297) एक दिन श्री पार्श्वनाथ प्रभु नवनिधि के स्वामी ऐसे एक राजा के नगर के पास में समवसरे। यह समाचार सुनकर वह राजा प्रभु को वंदन करने के लिए आया। प्रभु को वंदन करके उसने पूछा “हे प्रभो! पूर्व जन्म के किस कर्म से यह विपुल समृद्धि मुझे प्राप्त हुई ?' प्रभु ने फरमाया-महाराष्ट्र देश में हेल्लूर नामके गांव में पूर्व भव में तू अशोक नाम का माली था। एक दिन पुष्प बेचकर तू घर जा रहा था, यह देखकर तू उसके घरमें गया। वहां अर्हन्त का बिंब देखकर तू छाबड़ी में पुष्प ढूंढने लगा। उस समय नव पुष्प तेरे हाथ में आए। वे पुष्प तूने अतिभाव से प्रभु के ऊपर चढ़ाए, इससे तूने बहुत पुण्योपार्जन किया। एक वक्त तूने प्रियंगु वृक्ष की मंजरी राजा को भेंट की। इससे प्रसन्न होकर राजा ने तुझे लोक श्रेणी के प्रधान की पदवी दी। वहाँ से मृत्यु के पश्चात् उसी नगर में नवकोटि द्रव्य का अधिपति हुआ। वहाँ से मृत्यु प्राप्त कर उसी नगर में नवकोटि रत्नों का स्वामी हुआ और फिर वहाँ से मरकर तू इस भव में नवनिधि का स्वामी राजा हुआ है। अब यहाँ से अनुत्तर विमान में उत्पन्न होगा। प्रभु की इस प्रकार की वाणी सुनकर राजा के मन में अत्यन्त शुभ भावना उत्पन्न हुई, इससे उसने तत्काल प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण की।
___(गा. 298 से 310) इस प्रकार विहार करते हुए श्री पार्श्वनाथ प्रभु के सोलह हजार महात्मा साधु, अड़तीस हजार साध्वियाँ, तीन सौ पचास चौदह पूर्वधर, एक हजार चार सौ अवधि ज्ञानी, साढ़े सात सौ मनःपर्यवज्ञानी, एक हजार केवलज्ञानी, ग्यारह सौ वैक्रिय लब्धि वाले, छः सौ वाद लब्धि वाले, एक लाख चौसठ हजार श्रावक और तीन लाख और सतत्तर हजार श्राविकाएँ इस प्रकार के केवलज्ञान के दिन के पश्चात् परिवार हुआ। पश्चात् अपना निर्वाण समय निकट जानकर श्री पार्श्वनाथ प्रभु सम्मेतगिरि पर पधारे। वहाँ अन्य तैंतीस
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)