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मुनियों के साथ भगवंत ने अनशन ग्रहण किया। प्रांत में श्रावण मास की शुक्ल अष्टमी को विशाखा नक्षत्र में जगद्गुरु श्री पार्श्वनाथ प्रभु तैंतीस मुनियों के साथ मोक्ष पद को प्राप्त किया।
(गा. 311 से 317) गृहस्थ जीवन में तीस वर्ष और व्रत पालन में सत्तर वर्ष इस प्रकार सौ वर्ष की आयुष्य श्री पार्श्वनाथ प्रभु ने भोगी। श्री नेमिनाथ प्रभु के निर्वाण के पश्चात् तियासी हजार सात सौ पचास वर्ष व्यतीत होने पर श्री पार्श्वनाथ प्रभु मोक्ष पधारे। उस समय शक्रादि इन्द्रों ने देवताओं को साथ में लेकर सम्मेतगिरि पर आए और अत्यन्त शोका क्रान्त रूप से उन्होंने श्री पार्श्वनाथ प्रभु का उत्कृष्ट रूप से निर्वाण महोत्सव किया।
(गा. 318 से 320) तीन जगत् में पवित्र ऐसे श्री पार्श्वनाथ प्रभु के चरित्र को जो श्रद्धालु होकर श्रवण करता है, उनकी विपत्तियाँ दूर हो जाती है और उनको अद्भुत संपत्ति प्राप्त होती है। इतना ही नहीं, परन्तु अंत में परम पद भी प्राप्त होता है।
(गा. 321)
नवम पर्व समाप्त
श्री मक्षी पार्श्वनाथ तीर्थ वैशाख कृष्णा दसमी
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)
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