Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 126
________________ युद्ध करने आया। उसने युद्ध करके तेरी सेना को क्षीण कर दिया और तुझे जीव से मार डाला। उस समय रौद्र ध्यान के वश से तू मर कर छठी नरक में नारकी हुआ। तेरे विरह से पीड़ित वसंतसेना भी अग्नि में प्रवेश करके मृत्यु को प्राप्त हुई और वह भी नरक भूमि में उत्पन्न हुई। वहाँ से निकलकर तू पुष्कर वर द्वीप के भरतक्षेत्र में एक निर्धन पुरुष के घर पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ और तेरे जैसी ही जाति में वसंतसेना भी नरक में से निकलकर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई। यौवनवय में तुम दोनों का विवाह हुआ। दुःख का द्वार दारिद्र होने पर भी तुम दोनों निरन्तर क्रीड़ा करने लगे। एक वक्त तुम दोनों घर में थे, इतने में जैन साध्वियाँ तुमको दिखाई दी। तब तुम उठकर आदर और भक्ति से अन्नपान द्वारा प्रतिलाभित किया। बाद में उनको उनके स्थान संबंधी बात पूछने पर वे बोली। (गा. 280 से 288) बालचंद्रा नामक हमारी गणिनी है और वसुश्रेष्ठी के घर के पास हमारा उपाश्रय है। तब दिन के अंत भाग में मन में शुभ भाव धारण करके तुम वहाँ गये। तब गणिनी बालचंद्रा ने तुमको धर्म सुनाया, इससे तुमने गृहस्थ धर्म ग्रहण किया। वहाँ से मरणोपरान्त तुम दोनों ब्रह्मदेवलोक में नव सागरोपम की आयुष्यवाले देव बने। वहाँ से च्यवकर तुम इस भव में उत्पन्न हुए हो। पूर्व भील के भव में तुमने तिर्यंच प्राणियोंको वियोग कराया था, साथ ही दुःख दिया था। उस समय यह तुम्हारी स्त्री अनुमोदना करती थी उस कर्म के विपाक से इस भव में तुमको परिणीत स्त्रियों का विनाश, विरह, बंधन और देवी को बलिदान के लिये बंदी होना, आदि वेदनाएँ प्राप्त हुई, क्योंकि 'कर्म का विपाक महा कष्टकारी है।' (गा. 289 से 293) पश्चात् बंधुत्व ने पुनः पार्श्वनाथ प्रभु को नमस्कार करके पूछा कि, 'अब यहाँ से हम कहाँ जायेंगे?' और हमको अभी कितने भव करने पड़ेंगे। प्रभु ने कहा कि “तुम दोनों यहाँ से मरकर सहस्रार देवलोक में जाओगे। वहाँ से च्यवकर उस पूर्व विदेह में चक्रवर्ती बनोगे और यह तेरी स्त्री पट्टरानी बनेगी। उस भ्पव में तुम दोनों चिरकाल तक विषय सुख भोगकर दीक्षा लेकर त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व) [115]

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