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करके मंत्री ने सोचा कि 'पहले चुराया हुआ यह द्रव्य लेकर दोनों ने पृथ्वी में निधिरूप किया होगा, अतः अब इसे कब्जे में करने पर अन्य चोर लोग भी पकड़े जायेंगे। ऐसा सोचकर मंत्री ने पूरे सार्थ को राजपुरुषों द्वारा वापिस पकड़ कर बुलाया। तब यमदूत जैसे उन रक्षकों ने उन मामा भाणजों को खूब ताड़न किया। जब अतिमार पड़ने लगी तब वे विधुर होकर बोले कि हम तो इस सार्थ के साथ कल ही आए हैं, यदि ऐसा न हो तो फिर हमको मार डालना। उस स्थान के पुरुषों ने बंधुदत्त को बताते हुए कहा कि यह पुरुष तो इस सार्थ के साथ पाँच दिन पहले भी दिखाई दिया था । तब मंत्री ने सार्थपति से पूछा कि 'क्या आप इसे जानते हैं ?' सार्थपति ने कहा कि ऐसे तो कितने ही सार्थ में आते हैं और जाते हैं । उनको कौन पहचाने ? यह सुनकर मंत्री अति कुपित हुआ और उन मामा भाणजे को नरकावास जैसे कारागृह में डाल दिया।
(गा. 158 से 173)
इधर चंडसेन बंधुदत्त की तलाश करते हुए पद्म अटवी में घूमा, परन्तु कहीं भी बंधुदत्त मिला नहीं। तब वह निराश होकर घर पहुँचा । तब उसने प्रियदर्शना के समक्ष प्रतिज्ञा की कि 'यदि मैं छः महिने के अंदर तुम्हारे पति की शोध न कर लूँ, तो मैं अग्नि स्नान कर लूँगा। ऐसी प्रतिज्ञा करके चंडसेन ने कौशांबी और नागपुरी में बंधुदत्त की शोध के लिए अपने गुप्तचरों को भेजा । बहुत दिनों तक घूमते हुए वे वापिस लौट कर आकर बोले कि 'हम बहुत घूमे परन्तु बंधुदत्त हमें कहीं नहीं दिखाई दिया।' चंडसेन ने सोचा कि 'अवश्य ही प्रिया के विरह में उसने भृगुपात (भैरव जव) या अग्निप्रवेश करके मृत्यु प्राप्त कर ली होगी । मेरी प्रतिज्ञा को चार मास तो व्यतीत हो चुके हैं, अतः अब मैं भी अग्निप्रवेश कर लूँ क्योंकि बंधुदत्त का मिलाप होना दुर्लभ है। अथवा तो जब तक प्रियदर्शना का प्रसव न हो, तब तक राह देखूँ, पश्चात् उसके प्रसूत पुत्र को कौशांबी पहुँचा कर बाद में अग्नि प्रवेश करूँगा।
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( नवम पर्व )
(गा. 174 से 181)
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