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में से अपने व्यक्तियों को छुड़ा दें। पश्चात् हम नागपुरी जायेंगे। ऐसा कह बंधुदत्त वह करंडक उनके आगे रखकर मौन रहा। तब धनदत्त बोला कि, मुझे अभी तुरन्त मेरे व्यक्तियों को छुड़ाने की कोई जल्दी नहीं है। अभी तो मुझे तुम्हारे मित्र बंधुदत्त को मिलना है। पश्चात् जैसा वह कहेगा, वैसा करूँगा। बंधुदत्त ने अपने को प्रकट करते हुए कहा कि वह स्वयं बंधुदत्त है। तब उसे पहचान कर धनदत्त बोला कि अरे! तू ऐसी दशा को कैसे प्राप्त हुआ? तब बंधुदत्त ने अपनी सर्व हकीकत कह सुनाई। यह सुनकर धनदत्त ने कहा कि, हे वत्स! पहले हम भील लोगों के पास से प्रियदर्शना को छुड़ा लें, पश्चात् दूसरा काम करेंगे।
___(गा. 142 से 157) इस प्रकार दोनों बात कर ही रहे थे कि इतने में अचानक राजा के सुभट हथियार उठाते हुए वहाँ आ पहुँचे। वे जहाँ रहे हुए थे, उनको तस्कर जानकर पकड़ लिया। धनदत्त और बंधुदत्त उस करंडक को गुप्त स्थान पर रख ही रहे थे कि इतने में ही उनको उन राजपुरुषों ने पकड़ लिया और 'यह क्या है ?' यह पूछा। तब उन्होंने कहा कि 'तुम्हारे भय से ही हम इसे छिपा रहे थे।' पश्चात् राजसुभटों ने उस करंडक सहित उनको तथा अन्य मुसाफिरों को राजभय बताते हुए न्यायकारके राजमंत्री के पास ले गये। न्यायमंत्री ने परीक्षा करके अन्य मुसाफिरों को तो निर्दोष जानकर छोड़ दिया। पश्चात् इन मामा भाणजे को आदर सहित पूछा कि 'तुम कौन हो? कहाँ से आ रहे हो? और यह क्या है? वे बोले कि हम विशालानगरी से आ रहे हैं। यह द्रव्य हमारा पहले उपार्जन किया हुआ है। यह लेकर अब हम लाट देश की ओर जा रहे हैं। मंत्री ने कहा कि 'यदि यह द्रव्य तुम्हारा है तो बताओ कि इस करंडक में क्या क्या वस्तु है, और उनके क्या क्या चिह्न है। दोनों इससे अज्ञात होने की वजह से क्षोभित होते हुए बोले- 'हे मंत्रीराज। यह करंडक हमारा हरण किया हुआ है। अतः आप ही इसे खोलकर देख लें।' मंत्री ने उसे खोलकर देखा तो उसमें राजनामांकित आभूषण दिखाई दिये। बहुत समय पहले चुराये गये उन आभूषणों को याद
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)