Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ सम संसार में नट के जैसे प्राणी क्षण-क्षण में रूपांतर को प्राप्त करता है । उस समय तू ब्राह्मणरूप में बुद्धिमान् और तत्वज्ञ श्रावक था, वह कहाँ ? अतः अब पुनः पूर्वभव में अंगीकृत श्रावकधर्म को प्राप्त कर । मुनिश्री के वचन उस गजेन्द्र ने सूंढ आदि की संज्ञा से स्वीकार किया । (गा. 87 से 93 ) उस समय हथिनी बनी कमठ की पूर्वभव की स्त्री वरुणा भी वहाँ उपस्थित थी। उसे भी यह हकीकत सुनने से उस गजेन्द्र के समान जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। अरविंद मुनि ने उस हाथी को विशेष रूप से स्थिर करने के लिए गृहीधर्म पुनः सुनाया। इससे वह गजेन्द्र श्रावक होकर मुनि को नमन करके स्वस्थान पर चला गया । उस गजेन्द्र को बोधिलाभ की प्राप्ति जानकर वहां स्थित अनेक लोग आश्चर्यचकित होकर साधु बन गये तथा अनेक लोगों ने श्रावकत्व को प्राप्त किया । उस समय सागरदत्त सार्थवाह जिनधर्म में ऐसा दृढ़ हुआ कि उसे देवता भी चलित करने में समर्थ नहीं हो सकते थे। अरविंद महा मुनि ने उसके साथ अष्टापदगिरि पर जाकर सर्व अर्हन्तबिंबों को वंदना की और वहां से विहार करके अन्यत्र चले गए । (गा. 94 से 98 ) वह गजेन्द्र श्रावक ईर्यासमित्यादिक में तत्पर होकर निरतिचार अष्ठम (तेला) आदि तपाचरण करता हुआ भावयति होकर रहने लगा । सूर्य से तप्त हुआ जल पीता और शुष्क (सूखे पत्तों का पारणा करता हुआ वह गज हथिनियों के साथ क्रीड़ा करने में विमुख होकर वास्तव में विरक्त बुद्धिवाला हो गया। वह हाथी हमेशा ऐसा ध्यान करता है कि 'जो प्राणी मनुष्य जीवन को प्राप्त करके महाव्रतों का पालन करता है, वही धन्य है। क्योंकि द्रव्य का फल जैसे पात्र में दान देवे वैसा है, तो मनुष्यत्व का फल चारित्र ग्रहण करे, वैसा है। मुझे धिक्कार है, 'कि उस वक्त मैं द्रव्य के लोभी जैसे उसके फल को हार जाय वैसे दीक्षा लिये बिना मनुष्यत्व को हार गया।' इस प्रकार शुभ भावना भाता हुआ गुरु की आज्ञा में स्थिर मन वाला वह हाथी सुख दुःख में समभाव रखकर काल निर्गमन करने लगा। (गा. 99 से 103) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( नवम पर्व ) [52]

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130