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के लिए उसके पुत्र आपस में झगड़ने लगे। इससे उनके राज्य में बड़ा तूफान होने लगा। उस समय रत्नावली रानी इस बाला को लेकर अपने भाई और तापसों के कुलपति गालव मुनि के आश्रम में भागकर आ गयीं।
(गा. 236 से 243) एक बार कोई दिव्य ज्ञानी मुनि यहाँ पधारे। इससे गालव तापस ने पूछा कि 'इस पद्मा कुमारी का पति कौन होगा?' तब उन महामुनि ने फरमाया कि 'वज्रबाहु राजा का चक्रवर्ती पुत्र अश्व द्वारा हरण किये जाने पर यहाँ आवेंगे, और इस बाला को ब्याहेंगे। यह सुनकर राजा ने मन में विचार किया कि 'वक्राश्व जो मेरा अकस्मात् ही हरण करके यहाँ ले आया, वह विधाता का इस रमणी के साथ मिलाप कराने का ही उपाय होगा। इस प्रकार विचार करके राजा ने कहा कि, 'हे भद्रे! वे कुलपति गालव मुनि अभी कहाँ हैं ? उनके दर्शन करने से मुझे विशेष आनंद होगा। उसने कहा कि, 'पूर्वोक्त मुनि ने आज ही यहाँ से विहार किया है, उन मुनि को पहुँचाने हेतु गालव मुनि वहाँ गये हैं। वे उनको नमन करके अभी यहाँ पधारेंगे। इतने में 'हे नंदा! पद्मा को यहाँ ले आ, कुलपति के आने का समय हो गया है। ऐसे एक वृद्ध तापसी ने कहा। उसी समय घोड़ों की टापों की आवाज से अपने सैन्य को आया जानकर राजा ने कहा कि 'तुम जाओ', 'मैं भी इस सैन्य के क्षोभ से आश्रय की रक्षा करूँ।' पश्चात् नंदा सखी सुवर्णबाहु राजा को वक्र ग्रीवा से अवलोकन करती हुई पद्मा को वहाँ से जबरन ले गई।
(गा. 244 से 251) कुलपति जब आये तब नंदा ने उनको और रत्नावली को हर्ष से स्वर्णबाहु राजा का वृत्तांत कह सुनाया। यह सुनकर गालव ऋषि ने कहा कि 'उन मुनि का ज्ञान वास्तव में प्रतीतिजन्य सिद्ध हुआ। महात्मा जैन मुनि कभी भी मृषा भाषण करते नहीं है। हे बालिकाओं! 'ये राजा अतिथि होने से पूज्य हैं, और राजा तो वर्णाश्रम के गुरु कहे जाते हैं एवं अपनी पद्मा के तो भावी पति हैं', अतः चलो हम पद्मा को साथ लेकर उनके पास चलें। पश्चात् कुलपति गालव ऋषि, रत्नावली, पद्मा और नंदा को साथ लेकर राजा
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)
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