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संपत्ति से प्राणों से भी प्यारे पुत्रादि की जो रक्षा करते हैं, उनका त्याग करना वह भी प्राणियों को अशक्य है। उन सबको राजा नरवर्मा ने संसार छोड़ने की इच्छा से एक साथ छोड़ दिया। अतः उनको धन्यवाद देता हूँ। हे पुरुष ? तुम्हारी बात आगे चलाओ।
(गा. 53 से 67) वह पुरुष बोला कि-" उन नरवर्मा राजा के राज्य पर अभी हाल उनके पुत्र प्रसेनजित् राजा हैं। वे सेनारूप सरिताओं के सागर समान हैं। उनके प्रभावती नामकी पुत्री है। जो कि यौवनवया होने से भूमि पर देवकन्या हो, वैसी अद्वैत रूपवती है। विधाता ने चंद्र के चूर्ण से उनका मुख, कमल से नेत्र, सुवर्णरज से शरीर, रक्तकमल से हाथ-पैर, कदली गर्भ से उरू, शोणमणि से नख, मृणाल से भुजादंड रचे हों, ऐसा लगता है। अद्वैत रूपलावण्य से युक्त उस बाला को यौवनवती देखकर प्रसेनजित् राजा उस के योग्य वर के लिए चिंतातुर हुए। इससे उन्होंने राजाओं के अनेक कुमारों की तलाश की। परंतु कोई भी अपनी पुत्री के योग्य दिखाई नहीं दिया। एक बार वह प्रभावती अपनी सखियों के साथ उद्यान में आई। वहाँ किन्नरों की स्त्रियों के मुख से इस प्रकार एक गीत उसके सुनने में आया। श्री वाराणसी के स्वामी अश्वसेन राजा के पुत्र श्री पार्श्वकुमार रूपलावण्य से जय को प्राप्त हैं। ऐसे पति मिलना भी दुर्लभ है क्योंकि ऐसा पुण्य का उदय कहाँ से हो? इस प्रकार श्री पार्श्वनाथ का गुणकीर्तन सुनकर, प्रभावती तन्मय होकर उन पर रागवती हो गई। उस समय पार्श्वकुमार ने रूप से कामदेव को जीत लिया है, उनका वैर लेता हो वैसे उन पर अनुरागवाली प्रभावती पर निर्दयता से बाण के द्वारा प्रहार करने लगे। दूसरी व्यथा और लज्जा को छोड़कर हरिणी की तरह प्रभावती तो काम के वश होकर, चिरकाल तक शून्य मन से वहीं पर ही बैठी रही। तब बुद्धिमती उसकी सखियां मन से योगिनी की तरह पार्श्वकुमार का ध्यान करती हुई उसको युक्ति द्वारा समझा कर घर लाई। तब से ही उसका चित्त पार्श्वकुमार में ऐसा लीन हुआ कि उसे पोशक भी अग्नि जैसी लगने लगी। रेशमी वस्त्र अंगारे सा प्रतीत होने
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)
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