Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 81
________________ ने राजा ने और तत्व वेत्ता स्वप्नपाठकों ने उन स्वप्नों की व्याख्या कह सुनायी। वह श्रवण कर हर्षित हुई देवी उस गर्भ को धारण करती हुई सुखपूर्वक काल निर्गमन करने लगी। अनुक्रम से पौष मास की कृष्ण दशमी को अनुराधा नक्षत्र में रत्न की भांति विदुरगिरि की भूमि प्रसव करे वैसे वामादेवी ने सर्प के लांछन (लक्षण) से युक्त नीलवर्णी पुत्र रत्न को जन्म दिया। __ (गा. 22 से 26) तत्काल छप्पनदिक्कुमारिकाओं ने आकर अर्हन्त प्रभु का और उनकी माता का सूचिकर्म (शुद्धि) किया। पश्चात् शक्रेन्द्र ने देवी को अवस्वापिनी निद्रा प्रक्षेप की। उनके पार्श्व (पास) में प्रभु का प्रतिबिम्ब स्थापित किया एवं स्वयं ने पांच रूपों की विकुर्वणा की। उसमें एक रूप में स्वयं ने प्रभु को ग्रहण किया, दो रूपों में चंवर धारण किया। एक रूप में प्रभु के ऊपर छत्र किया और एक रूप में वज्र उछालते हुए, सुंदर चाल से चलते हुए और तिरछी गर्दन से प्रभु को निहारते हुए शीघ्र गति से मेरुगिरि पर ले चले। क्षणभर में तो मेरुगिरि की अतिपांडुकबला नाम की शिला पर पहुँच गये। वहाँ प्रभु को उत्संग (गोद) में लेकर शक्रेन्द्र सिंहासन पर बैठे। उस समय अच्युत आदि त्रेसठ इंद्र भी शीघ्र ही वहाँ आ पहुंचे। उन्होंने विधिपूर्वक प्रभु का जन्माभिषेक किया। पश्चात् सौधर्मेन्द्र ने ईशानेन्द्र के उत्संग में प्रभु को देकर वृषभ के शृंग में से निकलती जलधारा से प्रभु का अभिषेक किया। पश्चात् चंदनादिक से प्रभु का विलेपन, अर्चन, करके अंजलीबद्ध होकर इंद्र ने पवित्र स्तुति करना आरंभ किया। (गा. 27 से 34) “प्रियंगु वृक्ष सम नीलवर्णवाले, जगत् के प्रिय हेतुभूत एवं दुस्तर संसार रूपी सागर में सेतुरूप आपको प्रभु मैं नमस्कार करता हूँ। ज्ञान रूपी रत्न के कोश (भंडार) रूप, विकसित कमल जैसी कांतिवाले और भव्यप्राणी रूप कमल में सूर्य समान हे भगवंत! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। फलदायी एक हजार आठ (१००८) नरलक्षणों को धारणकरने वाले और कर्मरूप [70] त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)

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