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राक्षस से मेरी रक्षा करो, रक्षा करो। सखी ने कहा बहन! सुवर्ण बाहु के अतिरिक्त तेरी रक्षा करने में कौन समर्थ है? अतः रक्षा का प्रयोजन हो तो उस राजा का स्मरण कर पद्मावती की सखी के इस प्रकार के वचन सुनकर 'जब तक वज्रबाहु का पुत्र पृथ्वी पर राज्य करता है, तब तक कौन उपद्रव कर सकता है ?' ऐसा बोलता हुआ प्रसंग को जानने वाला स्वर्णबाहु तत्काल प्रगट हुआ। उसे आकस्मात् प्रगट हुआ देखकर दोनों ही बालाएं भयभीत हो गई, इससे वो दोनों उचित प्रतिपत्ति कर नहीं सकी और न ही कुछ बोल सकी। अतः ये दोनों डर गई हैं ऐसा जानकर राजा पुनः बोला कि, “हे भद्रे! यहाँ तुम्हारा तप निर्विघ्न हो रहा है ?' उनके ऐसे प्रश्न को सुनकर सखी ने धीरज रखकर कहा कि “जब तक वज्रबाहु कुमार राज्य करता है, तब तक तापसों के तप में विघ्न करने में कौन समर्थ है?' इस सैन्य के क्षोभ से आश्रम की रक्षा हे राजन! यह बाला तो मात्र कमल की भ्रांति से ऐसा महसूस कर रही है जैसे किसी भ्रमर ने उसके मुख पर डंक मारा, इससे कायर होकर, रक्षा करो! रक्षा करो! ऐसा बोली थी। इस प्रकार कहकर उसने एक वृक्ष के नीचे आसन देकर राजा को बिठाया।
(गा. 221 से 235) पश्चात् उस सखी ने स्वच्छ बुद्धि द्वारा अमृत तुल्य वाणी से पूछा कि, आप निर्दोष मूर्ति से कोई असाधारण मनुष्य लग रहे हो, तथापि कहो कि आप कौन हैं? कोई देव हो? या विद्याधर हो? राजा ने स्वयं अपनी पहचान को देना अयोग्य जानकर कहा कि, 'मैं स्वर्णबाहू राजा का आदमी हूँ और उनकी आज्ञा से इन श्रमणवासियों के विघ्नों का निवारण करने के लिए यहाँ आया हूँ, क्योंकि ऐसे कार्य में राजा का महान् प्रयत्न होता है।' राजा के ऐसे उत्तर से यह स्वयं ही वह राजा है, ऐसा मन में विचार करती हुई सखी को राजा ने कहा कि यह बाला ऐसा अशक्य काम करके अपनी देह को किसलिए कष्ट में डाल रही है? सखी ने विश्वास डालते हुए कहा कि रत्नपुर के राजा खेचरेन्द्र की यह पद्मा नाम की कुमारी है, इसकी माता का नाम रत्नावली है। इसका जन्म होते ही इसके पिता की मृत्यु हो गई। तब राज्य की प्राप्ति
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)