Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 25
________________ चंद्र साथ-साथ दिखते हैं, वैसे वे साथ साथ गांव में गये। किसी उत्तम ब्राह्मण ने उनको भगवान् जानकर भोजन का निमंत्रण दिया और उसने राजा तुल्य भक्ति से भोजन कराया। “प्रायः तेज के प्रमाण से ही सत्कार होता है।" (गा. 177 से 179) उसके पश्चात् उस ब्राह्मण की स्त्री ने कुमार के मस्तक को अक्षत से बधाकर दो श्वेत वस्त्र और एक अप्सरा जैसी कन्या उनके समक्ष रखी। वरधनु बोला - अरे मूढ! कसाई के आगे गाय के समान यह पराक्रम या कला में अज्ञात जन के कंठ में इस कन्या को क्या देखकर बांध रहे हो? तब वह ब्राह्मण बोला कि “यह मेरी गुणवती बंधुमती नाम की कन्या है। इसका इस पुरुष के अतिरिक्त अन्य कोई वर नहीं है क्योंकि एक नेमैत्तिक ने मुझे कहा है, कि इस कन्या का पति षट्खंड पृथ्वी का पालक होगा।" उस निश्चय से वह यही पुरुष है और फिर उसने मुझे यह भी बताया कि वस्त्र से जिसने अपना श्रीवत्स लांछन ढंककर रखा होगा। साथ ही जो पुरुष तेरे यहाँ भोजन करने आवे, उसे तुझे तेरी कन्या अर्पण करनी है। तब उस बंधुमती कन्या के साथ ब्रह्मदत्त का विवाह हो गया। भोगियों को अचिंत्य मनोवांछित भोग सामग्री मिल जाती है। उस रात्री में बंधुमती के साथ रहकर, उसे आश्वासन देकर दूसरे दिन कुमार वहाँ से अन्यत्र जाने के लिए चल पड़ा, “क्योंकि शत्रु वाले पुरुष एक स्थान पर किस प्रकार रह सकते हैं ?'' प्रातः काल वे एक गांव में पहुँचे, वहाँ उन दोनों ने सुना कि दीर्घराजा ने ब्रह्मदत्त के सभी मार्ग रुंध डाले हैं। यह सुनकर उन्मार्ग से चलते हुए वे एक महाअटवी में आ पहुँचे। वहाँ मानो दीर्घ राजा के पुरुष हों, वैसे अनेक भयंकर शिकारी प्राणियों ने उस अटवी को अवरूद्ध कर रखा था। तृषा से व्याकुल ब्रह्मदत्त को वहाँ एक बड़ के नीचे बैठा कर मंत्री कुमार मन जैसे वेग से जल लेने चल पड़ा। वहाँ दीर्घराजा के पुरुषों ने जैसे सूअर के बच्चे को श्वान रुंघ लेता है, वैसे ही रोष से वरधनु को पहचान कर पकड़ लिया। पश्चात् पकड़ो, मारो, पकड़ो मारो ऐसे भयंकर शब्द बोलते हुए उन्होंने [14] त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)

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