Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 47
________________ दिन दीनार और भोजन दिया। राजा की आज्ञा से वह ब्राह्मण भरत क्षेत्र में अनुक्रम से सभी घरों में भोजन करने लगा। ऐसा सोचने लगा कि सर्वत्र भोजन करके पुनः राजा के घर खाऊँगा। परंतु उसे चिरकाल तक राजभोजन प्राप्त नहीं हुआ। ऐसी रीति में व्यर्थ काल व्यतीत करता हुआ वह भट्ट किसी समय मृत्यु को प्राप्त हो गया। (गा. 471 से 484) एक दिन ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती नाट्य संगीत देखने राज्यसभा में बैठे थे। इतने में एक दासी ने आकर देवांगनाओं से गुम्फित हो वैसी एक विचित्र गेंद उनको प्रदान की। उसे देखकर ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को विचार आया कि ‘ऐसा पुष्पगोलक पूर्व में किसी स्थान पर मैंने देखा है।' ऐस बारम्बार ऊहापोह करते उसे 'पूर्व के पांच भव ज्ञात कराने वाला जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ।' तत्काल ही वह मूर्च्छित हो गया। उस वक्त उसे ज्ञात हुआ कि पूर्व में ऐसा गोलक मैंने ‘सौधर्म देवलोक' में देखा था। तब चंदन जल से सिंचन करने पर स्वस्थ होने पर वह चिंतन करने लगा कि — अब मेरे पूर्व जन्म का सहोदर मुझे कहाँ मिलेगा? तब उसे पहचानने के लिए ब्रह्मदत्त ने एक अर्ध श्लोक की समस्या इस प्रकार रची – “आश्वदासौ मृगौ हंसौ मातंगावमरौ तथा' इस अर्द्ध श्लोक की समस्या पूर्ति जो कर देगा, तो उसे मैं आधा राज्य दूंगा। ऐसी घोषणा पूरे नगर में कराई। सर्व लोगों ने यह आधा श्लोक अपने नाम की तरह कंठस्थ किया, परन्तु कोई उसे पूर्ण न कर सका। (गा. 485 से 491) इधर 'चित्र' का जीव जो पुरिमताल नगर में एक धनाढ्य के घर पुत्र रूप में अवतरित हुआ। उसे भी जातिस्मरण ज्ञान होने से दीक्षा लेकर विहार करते-करते यहाँ आ पहुँचे। नगर के बाहर एक मनोरम उद्यान में एक प्रासुक स्थल पर वे मुनि रहे। वहाँ जल की रहट घुमाने वाला मनुष्य अर्ध श्लोक बोल रहा था। वह उन मुनि को सुनाई दिया। इससे उन्होंने तुरंत उत्तरार्ध पूरा किया। “ एषा नैष्ठिका जाति रन्योऽन्याभ्यां वियुक्तयोः।" यह [36] त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)

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