Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 45
________________ पुत्रों को अलग अलग देश बांट कर चारित्र लेकर तपस्या करते हुए मोक्ष गए थे। तब से ही उन पुत्रों के नाम के अनुसार उन उन देशों के नाम रखे गए थे। वे इस प्रकार - पूर्व दिशा में प्रगम, मस्तक, पुत्रांगारक, भल्ल, अंग, अर्मलय, भार्गव, प्राग्योतिष, वंश, मगध मासवर्तिक, दक्षिण दिशा में बाणमुक्त, वैदर्भ, वनवासिक, महीषक, वनराष्ट्र, तामिक, अश्मदंडक, कलिंग, ईषिक, पुरुष, मूलक, कुंतल, पश्चिम दिशा में दुर्ग, सुर्पारक, अर्बुद, आर्यकल्ली, वनायस्त, कार्क्षिक, नर्तसारिक माहेष, रूरू, कच्छ, सुराष्ट्र, नर्मद, सारस्वत, तापस, उत्तर दिशा में कुरुजांगल, पंचाल, सूरसेन, पच्चर, कलिंग, काशी, कौशल, भद्रकार वृक, अर्थक, विगर्त, कौसल, अंबष्ट, साल्व, मत्स्य, कुलीयक, मौक, वाल्हीक, कांबोज, मधु, मद्रक, आत्रेय, यवन, आभीर, वान, वानस, कैकय, सिंधु, सौवीर, गांधार, काथ, तोष, दसेरक, भारद्वाज, चमू, अश्वप्रस्थाल, तार्णकर्णक, त्रिपुर, अवंति चेदि, किष्किन्ध, नैषध, दशार्ण, कुसुमर्ण, नौपाल, अंतप, कोसल, पदाम विनिहोत्र वैदिश, यह सभी देश विंध्याचल के पृष्ठ भाग में हैं । विदेह, भत्स, भद्र, वज्र, सिंडिंभ, सैडव, कुत्स और भंग ये देश पृथ्वी के मध्य भाग में हैं। (गा. 450 से 462) प्रारंभ में मगधाधीश को साधकर वरदाम, प्रभास, कृतमाल और अन्य देवों को भी ब्रह्मदत्त ने अनुक्रम से साध लिया। तत्पश्चात् ब्रह्मदत्त चक्री ने चक्र का अनुसरण करके निन्याणवें देशों को भी स्वयमेव साध लिया और वहाँ के राजाओं को भी वश में कर लिया । भिन्न-भिन्न स्वामियों का उन्मूलन करके षड्खंड पृथ्वी का स्वयं एक ही स्वामी होकर उन सबको एक खंड जैसा कर लिया। तब सर्व राजाओं के मुकुट पर जिसका शासन लालित था, ऐसा ब्रह्मदत्त सर्व शत्रुओं का दमन करके कांपिल्यपुर की ओर चल दिया। “जिस सैन्य से पृथ्वी को और उससे उड़ी हुई रज से आकाश को आच्छादन करते थे । छड़ीदार जैसे आगे चलता चक्र जिसे मार्ग बताता था, ऐसे चौदह रत्नों का स्वामी और नवनिधियों के ईश्वर ब्रह्मदत्त चक्री अविच्छिन्न प्रयाण से चलते हुए अनुक्रम से नगर के समीप आ पहुँचा।" त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व ) [34]

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