Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 59
________________ कमठ की स्त्री वरुणा को यह ज्ञात हुआ। इससे करुणाहीन बनकर, अरुणलोचन वाली होकर अर्थात् लालपीली होकर उस स्त्री ने ईर्ष्यावश सर्व वृत्तांत मरुभूति को कहा। मरुभूति ने कहा 'आर्ये! चंद्र में संताप तुल्य मेरे आर्य बन्धु कमठ में ऐसा अनार्य चरित्र कदापि संभव नहीं है। इस प्रकार मरुभूति का निवारण करने पर भी वह तो प्रतिदिन आ आकर यह बात कहने लगी। तब मरुभूति ने एक दिन विचार किया कि ऐसी बाबत में अन्य के कहने से कैसे प्रतित करना? वह स्वयं तो संभोग से विमुख था, तथापि इस विषय में प्रत्यक्ष देखकर ही निश्चय करना।' ऐसा सोचकर उसने कमठ के पास जाकर कहा 'हे आर्य! मैं कुछ कार्य प्रसंग से आज बाहर जा रहा हूँ। ऐसा कह कर मरुभूति नगर के बाहर चला गया और रात्रि में कापडिया का वेष बनाकर,भाषा आवाज बदल कर घर आया। उसने कमठ के पास जाकर कहा कि 'हे भद्र! मैं दूर से चलता आया प्रवासी हूँ, अतः आज रात्रि को विश्राम करने के लिए मुझे आश्रय दो।' कमठ ने निःशंक होकर उसको अपने ही मकान का बहिर्भाग दिया। तब उसने कपट निद्रा से सोकर जाली में से उस अतिकामांध स्त्री पुरुष की दुष्चेष्टा को देखा। आज मरुभूति तो अन्यत्र गया हुआ है, ऐसी धारणा से उस दुर्भति कमठ और वसुन्धरा ने चिरकाल तक कामक्रीड़ा की। जिसे देखना था, उसे मरुभूति ने देख लिया। परन्तु लोकोपवाद के भय से उसने उस वक्त कुछ भी विरुद्ध कार्य किया नहीं। परंतु उसने अरविंद राजा के समक्ष सर्व हकीकत कह सुनाई। तब अनीति जिसे असह्य थी, ऐसे अरविंद राजा ने आरक्षकों को आज्ञा दी कि पुरोहितपुत्र कमठ ने महा दुश्चरित्र किया है, परंतु पुरोहित पुत्र होने से वह अवध्य है, अतः गधे पर बैठा कर, विडंबना के साथ गांव में घुमाकर उसे बाहर निकाल दो। राजा का इस प्रकार आदेश होने पर आरक्षकों ने कमठ के अंगों को विचित्र धातुओं से रंग कर, गधे पर बिठाकर, विरस वाजिंत्र बजाते हुए पूरे नगर में घुमाकर उसे नगर से बाहर निकाल दिया। नगर के लोगो के देखने पर शरम से मुख नीचा करके रहा हुआ कमठ कुछ भी प्रतिकार न कर सकने पर जैसे तैसे वन में आया। पश्चात् अत्यन्त निर्वेद [48] त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)

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