________________
स्पर्श करने में भी नहीं होती थी। जैसे दुर्मति पुरुष मदिरा पात्र को छोड़ता नहीं है, वैसे कभी भी दुर्गति का कारण रूप उस थाल को किंचित मात्र भी छोड़ता नहीं था। ब्राह्मणों के नेत्रों की बुद्धि से गूंदे के फल को बार बार मसलता हुआ ब्रह्मदत्त फलाभिमुख हुआ पापरूपी वृक्ष के दोहद को पूरा करता था। इस प्रकार ब्रह्मदत्त का अनिवार्य और रौद्र अध्यवसाय अत्यन्त वृद्धिगत हुआ। “बड़े लोगों के शुभ या अशुभ दोनों बड़े ही होते है।' इस प्रकार रौद्र ध्यान का अनुबंध वाला और पाप रूपी कीचड़ में वराह जैसे इस राजा के सोलह वर्ष व्यतीत हो गये।
(गा. 572 से 597) ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के अट्ठाईस वर्ष कुमारवय में, छप्पन वर्ष मांडलिक रूप में, सोहल वर्ष भरतक्षेत्र को साधने में छः सौ वर्ष चक्रवर्ती पद में व्यतीत हुए। इस प्रकार जन्म से लेकर सात सौ वर्ष का आयुष्य पूर्ण करके बारम्बार कुरुमती, कुरुमती ऐसा बोलता हुआ ब्रह्मदत्त चक्र वर्ती हिंसानुबंधी परिणाम के फल के योग्य सातवीं नरक भूमि में उत्पन्न हुआ।
(गा. 598 से 600)
[44]
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)