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अनुरक्त हुए उस दंपत्ति ने वहाँ गांधर्व विवाह किया। यह विवाह मंत्र रहित है, तथापि क्षत्रियों में दंपत्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है। पश्चात् विचित्र वार्तालाप द्वारा उसके साथ क्रीड़ा करते हुए ब्रह्मदत्त ने त्रियामा (रात्री) एक यामा (प्रहर) की तरह निर्गमन की।
(गा. 221 से 235) प्रातः काल आकाश में मृगलियों के जैसे खेचर स्त्रियों के शब्द ब्रह्मदत्त को सुनने में आए। तब अभ्र बिना की वृष्टि जैसे अकस्मात् यह शब्द किसके होंग? ऐसा ब्रह्मदत्त ने पुष्पवती से पूछा। पुष्पवती ने संभ्रम से कहा कि " हे प्रिय! आपका शत्रु नाटयोन्मत्त विद्याधर की खंडा और विशाखा नामकी दो बहने हैं। उन विद्याधर कुमारिकाओं की यह आवाजें हैं। वे अपने भाई के विवाह की सामग्री हाथ में लेकर यहाँ आ रही हैं। “परंतु मनुष्य के अन्यथा चिंतित कार्य को दैव अन्यथा कर देते हैं।" हे स्वामिन्! अभी आप क्षणभर के लिए दूर हो जाइये। तो मैं आपके गुणकीर्तन करके उनका आपके ऊपर राग-विराग के भाव जान लूँ। हे नाथ! यदि आप पर उनका राग होगा तो मैं लाल ध्वजा बताऊंगी और विराग के भाव होगें तो श्वेत ध्वजा दिखाऊँगी। यदि श्वेत ध्वजा दिखाऊँ तो आपको दूसरी ओर चले जाना होगा
और यदि लालध्वज बताऊं तो इधर आ जाइयेगा। ब्रह्मदत्त बोला – 'हे भीरु! तुम डरो मत। मैं ब्रह्मराजा का कुमार हूँ। ये स्त्रियाँ तोष या रोष से मेरा क्या कर सकती है? पुष्पवती बोली “मैं उन विद्याधारियों के लिए नहीं कह रही, परंतु उनके संबंधी खेचर आपके साथ विरोध नहीं करे, इसलिए कह रही हूँ। पश्चात् ब्रह्मदत्त उसके चित्त की अनुवृत्ति से एक तरफ छुपा रहा। थोड़ी देर में पुष्पवती ने श्वेत ध्वजा चलाई, यह देखकर कुमार प्रिया के आग्रह के कारण धीरे धीरे उस प्रदेश में से अन्यत्र निकल गया। वैसे ऐसे नरों को कोई भय होता नहीं है।
(गा. 236 से 245) वहाँ से आगे चलते आकाश से दुर्गाह अरण्य का उल्लंघन करके सायंकाल में थका हारा वह समुद्र के समान एक महान् सरोवर के समीप
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)