Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 07
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ हाथी के बच्चे की तरह तत्काल अरण्य में भाग गये। अनुक्रम से वे कौशांबी पुरी के पास आए। (गा. 291 से 304) उस नगरी के उद्यान में उस नगर में रहने वाले सागरदत्त सेठ और बुद्धिल ने कूकड़े (मुर्गे) में लड़ाई हो रही थी। उसमें हारजीत पर एक लक्ष द्रव्य का पण (निर्धारण) किया हुआ था। वह इन दोनों कुमारों ने देखा। दोनों ही मुर्गे खींचने की संडासियाँ हो, वैसे तीक्षण नखों से और चोंचों से उछल उछल कर युद्ध कर रह थे। इसमें सागरदत्त का मुर्गा जातिवान् था। बुद्धिल का मुर्गा जातिवान् नहीं था। थोड़ी देर युद्ध हो जाने के बाद ब्रह्मदत्त ने बुद्धिल के मुर्गे के पैरों में यमराज की दूती जैसी तीक्षण लोहे की सूईयां देखी। उसका बुद्धिल को पता चलते ही उसने गुप्त रीति से अर्द्धलक्ष द्रव्य ब्रह्मदत्त को देना चाहा। तथापि उसे न स्वीकारते हुए यह वृत्तान्त लागों को ज्ञात करा दिया। पश्चात् ब्रह्मदत्त ने उन लोहे की सुईयों को खींच कर बुद्धिल के मुर्गे को सागरदत्त के मुर्गे के साथ पुनः युद्ध करने को प्रेरित किया। तब सूई बिना बुद्धिल के मुर्गे को सागरदत्त के कूकड़े ने क्षणभर में भग्न कर डाला। कपटी की जय कहां तक हो? इस प्रकार हुई विजय से हर्षित हुआ सागरदत्त ब्रह्मदत्त और मंत्री पुत्र कि जो विजय दिलाने के मित्र रूप हो गये थे, उसको अपने रथ में बिठाकर अपने घर ले गया। वहाँ वे अपने घर की तरह बहुत दिन रहे। एक बार बुद्धिल के सेवक ने आकर वरधनु से कुछ कहा। उसके जाने के बाद वरधन ने ब्रह्मदत्त से कहा कि 'देखो! बुद्धिल ने जो अर्धलक्ष द्रव्य मुझे देने को कहा था, वह आज भिजवाया हैं। ऐसा कह निर्मल, स्थूल और वर्तुलाकार मोतियों का जो शुक्र के तारामंडल का अनुसरण करता था एक हार उसे बताया। उस हार के साथ अपने नाम से अंकित एक लेख ब्रह्मदत्त को दिखाई दिया। उसी समय मूर्तिमान् संदेशा हो ऐसी वत्स! नाम की तापसी भी वहाँ आई। वे दोनों कुमार के मस्तक पर अक्षत डालकर आशीर्वाद देने लगी और वरधनु को एक ओर ले जाकर कुछ बात कहकर चली गई। तब मंत्रीपुत्र ने ब्रह्मदत्त से कहा – त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व) [23]

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130