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कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित [ नवम् पर्व ]
सर्ग १ श्री ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का चरित्र
श्री नेमिनाथ प्रभु को नमस्कार करके उनके तीर्थ में जन्मे ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का चरित्र चित्रण अब किया जा रहा है। इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में साकेतपुर नाम का नगर है। उसमें पूर्वकाल में चंद्रावतंस नामक राजा के मुनिचंद्र नाम का पुत्र था। उसने कामभोगों से निर्वेद प्राप्त कर जैसे भारवाही मनुष्य भार को त्याग देता है, वैसे ही संसार का त्याग करके सागरचन्द्र नामक मुनि के पास व्रत ग्रहण किया। एक समय दीक्षा की परिपालना करते हुए वे जगत्पूज्य मुनि गुरु के साथ देशांतर में विचरण करने चल दिये। मार्ग में भिक्षा के लिए वे एक गांव में गए। वहाँ उनके रुक जाने से और सार्थ के चले जाने से यूथ से बिछुड़े मृग की भांति वे सार्थभ्रष्ट होकर अटवी में इधर उधर भटकने लगे।
___(गा. 1 से 5) वहाँ क्षुधा और तृषा से आक्रान्त होकर ग्लानि को पाने लगे। इतने में उनको चार ग्वाले मिले, उन्होंने बंधुओं के समान उनकी सेवा की। मुनि ने उनके उपकार के लिए देशना दी, क्योंकि सत्पुरुष अपकारी पर भी कृपावंत होते हैं, तो उपकारी पर क्यों नहीं हों? मानो चतुर्विध धर्म की चारों प्रतिमूर्ति हो वैसे समतावाले उन चारों ग्वालों ने उनकी देशना श्रवण करके उनके पास दीक्षा ली। उन चारों मुनियों ने भी सम्यग् प्रकार से व्रत की परिपालना की। परन्तु उनमें से दो ने धर्म की जुगुप्सा की। “प्राणियों की मनोवृत्ति विचित्र होती
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)
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